ग्राउंड जीरो: अगले तीन दिन में बदल जाएगी बिहार की चुनावी तस्वीर
पटना ब्यूरो। बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की तारीख करीब आते आते बहुत कुछ बदलता जा रहा है। मतदाताओं के एक वर्ग ने ख़ामोशी धारण कर ली है और वह अपना मूँह नहीं खोल रहा। यह वह मतदाता है जो हवा का रुख देखकर मतदान करता है। इसलिए बिहार की सत्ता का फैसला इसी मतदाता के निर्णय पर टिका है।
पिछले पांच दिनों में बिहार की चुनावी हवा ने रुख बदला है। ज़मीनी हकीकत देखें तो मीडिया में आये ओपनियन पोल फेल होते दिख रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल की सभाओं में उम्मीद से कहीं अधिक भीड़ जुट रही है। इस भीड़ में बड़ी तादाद उस युवा मतदाता की है जिसने 2014 और 2019 में बीजेपी को केंद्र की सत्ता दिलाई है।
राजद नेता तेजस्वी यादव की सभाओं में जुट रही भीड़ ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की रैलियों के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। बिहार में अचानक बदली हवा ने सत्तारूढ़ जेडीयू-बीजेपी की चिंताएं बढ़ा दी हैं।
हालांकि अभी यह कहा जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी की सभाओं के बाद बिहार की चुनावी हवा एक बार फिर बदल सकती है लेकिन राजद-कांग्रेस की सभाओं में जुट रही भीड़ को देखकर लगता है कि पीएम नरेंद्र मोदी की सभी रैलियां फीकी रहने वाली हैं और उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं जुटेगी।
चुनावी जानकारों और विश्लेषकों की माने तो राष्ट्रीय जनता दल का दस लाख रोज़गार और युवा सरकार का मुद्दा हिट हो चला है और इन दो अहम मुद्दों पर कांग्रेस द्वारा लगाई गई किसान क़र्ज़ माफ़ी की चाशनी से मतदाताओं के मन में उम्मीदें जागी हैं।
यही कारण है कि राजद-कांग्रेस नेताओं की रैलियों में भीड़ गंभीरता से भाषण सुनने पहुंच रही है। राजद-कांग्रेस की अग्नि परीक्षा 23 अक्टूबर को होनी है। उस दिन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव संयुक्त रैली को संबोधित करेंगे।
तेजस्वी की रैलियों में भारी संख्या में लोग जुट रहे हैं, इससे साबित हो रहा है कि राज्य में भारी सत्ता विरोधी लहर है- शिवानंद तिवारी,आरजेडी नेता
वहीँ जानकारों का कहना है कि अगले तीन दिनों में बिहार की चुनावी हवा पूरी तरह पलट जायेगी। ओपनियन पोल के नाम पर अब तक आये मीडिया के सभी सर्वेक्षण पलट जायेंगे। जो ओपिनियन पोल आज बिहार में एनडीए की सरकार में वापसी और एनडीए को 130 सीटें मिलने की बात कर रहे हैं, उन्हें झटका लगना तय है।
ज़मीन पर मुद्दों को खंगालने पर पता चलता है कि बिहार के मतदाताओं को अब लॉकडाउन के दौरान झेली मुश्किलें याद आ गई हैं। पिछले 4-5 दिनों में राजद और कांग्रेस के नेताओं ने अपने भाषणों से लॉकडाउन के दौरान सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर बिहार पहुंचे लोगों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वह बयान भी याद दिला दिया है जिसमे उन्होंने जो जहाँ है वहीँ रहे की बात कहकर प्रवासी मजदूरों को बिहार लाने के लिए किसी तरह की मदद देने से इंकार कर दिया था।
बिहार में आबादी का एक बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों में जाकर आजीविका कमाता है। अनलॉक शुरू होने के बाद भी बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर बिहार में मौजूद हैं और सरकार उन्हें काम उपलब्ध नहीं करा सकी है। दूसरी तरफ बिहार में बढ़ती बेरोज़गारी और बीमार पड़ी स्वास्थ्य सेवाओं ने कोरोना काल में सरकार की पोल खोल दी है।
जानकारों की माने तो बेरोज़गारी, किसानो की दुर्दशा जैसे मुद्दों में कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की बिहार वापसी का मुद्दा जुड़ चुका है और बिहार की चुनावी हवा के लिए अगले तीन दिन बेहद महत्वपूर्ब बताये जा रहे हैं। इन तीन दिनों में बीजेपी-जेडीयू भी अपनी पूरी ताकत झौंकने जा रहे हैं। इसके बाद ही बिहार की असली चुनावी तस्वीर उभर कर सामने आएगी।