ताज महल को शिव मंदिर बताने के पीछे इस किताब में दिए हैं ये तर्क

ताज महल को शिव मंदिर बताने के पीछे इस किताब में दिए हैं ये तर्क

नई दिल्ली। पिछले एक दो वर्ष के अंतराल में इतिहास को लेकर एक नया मामला बना या समझिये कि बना दिया गया। यह मामला वर्षो से देश का गौरव बढ़ा रहे ताजमहल को लेकर है। ताज महल को शिव मंदिर बताने के लिए कुछ लोग एक किताब का हवाला दे रहे हैं वह इतिहास नहीं बल्कि अभी हाल ही में लिखी गयी एक किताब है।

इतिहासकार पुरुषोत्तम नाथ ओक और योगेश सक्सेना अपनी किताब “ताज महलः ट ट्रू स्टोरी” में दावा किया है कि ताजमहल एक मकबरा नहीं बल्कि शिव मंदिर है। इस किताब में लेखक ने ताज महल को मंदिर साबित करने के लिए कई तर्क दिए हैं लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से इन तर्कों की कहीं पुष्टि नहीं होती।

इतिहासकार ओक की किताब के मुताबिक, ताजमहल एक शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है। ताजमहल को शाहजहां ने नहीं बल्कि एक हिंदू राजा ने बनवाया था। ताजमहल के लिए हिंदू संगठनों की ओर से तर्क दिए गए कि संगमरमर की इमारत को साल 1192 में राजा परमार्दिदेव ने बनवाया था।

किताब के मुताबिक ये इमारत एक मंदिर थी, जिसमें अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर शिवलिंग की पूजा होती थी। शाहजहां ने इसे राजपूत राजा मानसिंह के पोते जयसिंह से हासिल किया था। शाहजहां की बेगम मुमताज महल का असली मकबरा बुरहानपुर में था। शाहजहां ने कब्जे के बाद मुमताज को वहां दफन कर शिव मंदिर को ही मकबरे में बदल दिया था।

किताब में ताज महल को एक शिव मंदिर साबित करने के लिए दिए गए तर्क :

  • किसी भी मुस्लिम इमारत के नाम के साथ कभी महल शब्‍द प्रयोग नहीं हुआ है।

  • यह कहा जाता है कि मुमताज की कब्र पर बूंद-बूंद कर पानी गिरता है। दुनियाभर में कहीं भी किसी कब्र पर बूंद-बूंद पानी नहीं गिरता है। यह सिर्फ शिव मंदिरों में ही होता है, जहां शिवलिंग पर बूंद-बूंद पानी गिरता है।

  • ‘ताज’ और ‘महल’ दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।

  • संगमरमर की सीढ़ियां चढ़ने से पहले जूते उतारने की परंपरा है, जैसी मंदिरों में प्रवेश पर होती है, जबकि किसी मकबरे में जाने के लिए जूते नहीं उतारे जाते हैं।

  • संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित हैं तथा उसके ऊपर 108 कलश बने हैं, हिंदू मन्दिर परम्परा में भी 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है।

  • ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द ‘तेजोमहालय’ शब्द का अपभ्रंश है, जहां अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे।

  • ताज के दक्षिण में एक पुरानी पशुशाला है, जहां तेजोमहालय की पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गौशाला होना एक असंगत बात है।

  • ताज के पश्चिमी छोर में लाल पत्थरों के अनेक उपभवन हैं, जो कब्र की तामीर के संदर्भ में अनावश्यक हैं।

  • संपूर्ण ताज परिसर में 400 से 500 कमरे तथा दीवारें हैं। कब्र जैसे स्थान में इतने सारे रिहाइशी कमरे आखिर क्यों बनाए गए थे।

क्या कहता है इतिहास :

उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग की वेब साइट पर ताज महल के बारे में लिखा गया है कि ताजमहल को मुगल बादशाह शाहजहां ने 1628-1658 में अपनी बेगम अर्जुमंद बानो उर्फ मुमताज की याद में बनवाया था। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की वेबसाइट में भी कहा गया है कि ताजमहल को अकबर के पोते शाहजहां ने मुमताज की याद में बनवाया था।

इतिहास के पन्नों पर दर्ज ये दास्तान बताती है कि मुमताज महल की मौत के बाद साल 1632 में शाहजहां ने मुमताज महल का ये मकबरा बनवाया था। उन्होंने अपनी चाहत को संगमरमर के इस हुस्न में हमेशा के लिए कैद कर दिया। ताज महल को देखने दुनिया भर से जो पर्यटक आते हैं उन्हें यही कहानी जाने कितनी बार सुनाई गई है।

क्या कहती है सरकार:

केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने साल 2015 में कहा था कि सरकार को ताजमहल के हिंदू मंदिर होने के दावे से जुड़ा कोई सबूत नहीं मिला है।

इतिहास को दर किनार कर लिखी गयी किताब के दावे संदेहास्पद:

अधिकतर इतिहासकारो का मानना है कि ताज महल में शिव मंदिर की कल्पना करना महज एक काल्पनिक तथ्य है जिसे साबित नहीं किया जा सकता। ताज महल इतिहास की वह बड़ी धरोहर है जिसे मुगलकालीन इमारतों में सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। ताज महल को शिव मंदिर साबित करने की कोशिश में लिखी गयी किताब “ताज महलः ट ट्रू स्टोरी” में किसी ऐसे तथ्य का ज़िक्र नहीं जिस से यह साबित हो सके कि यहाँ शिव मंदिर था।

किताब में जिन तथ्यों का उल्लेख है वे अधिकतर इतिहास की कसौटी पर फिट नहीं बैठते। किताब में ताज महल के डिजायन में जिस कलश पर सवाल उठाये गए हैं उसी पैटर्न का डिजायन कई और मुगल इमारतों में मौजूद है।

फ़िलहाल इस किताब ने एक ऐसे नए सवाल को जन्म दे दिया है जिसके जबाव में स्वयं लेखक के पास भी पर्याप्त सबूत और तथ्य नहीं है। किताब ताज महल को शिवमंदिर साबित करने के लिए जिन तथ्यों का सहारा लिया गया है वे इतिहास की दृष्टि से शून्य हैं। इन तथ्यों का इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है। ज़ाहिर है ये लेखक की निजी सोच हो सकती है।

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