नीतीश को लग सकता है बड़ा झटका, सीएए के मुद्दे पर कई विधायक छोड़ सकते हैं साथ

नीतीश को लग सकता है बड़ा झटका, सीएए के मुद्दे पर कई विधायक छोड़ सकते हैं साथ

पटना ब्यूरो। नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर जदयू के दो नेताओं प्रशांत किशोर और पवन वर्मा द्वारा दागे गए सवालो से परेशान होकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भले ही उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो लेकिन दरअसल यह अंत नहीं था बल्कि जदयू में आने वाले तूफ़ान की आहट थी।

पार्टी में बगावत के तूफ़ान को नीतीश कुमार ने वक्तीतौर पर थाम दिया लेकिन अब जो खबर बाहर आ रही है वह नीतीश कुमार और जनता दल यूनाइटेड को परेशान कर सकती है।

दिल्ली में कल विधानसभा चुनाव के बाद आये एग्जिट पोल से साफ़ हो गया है कि बीजेपी का सीएए, धारा 370 और राम मंदिर का मुद्दा मतदाताओं ने बुरी तरह नकार दिया है। बिहार में इस वर्ष के अंत तक चुनाव होना है इसलिए बीजेपी के सहारे बिहार में सरकार की नैया चलाने वाले नीतीश कुमार के लिए दिल्ली के चुनाव परिणाम एक बड़ा सदेश लेकर आएंगे।

वहीँ दूसरी तरफ जनता दल यूनाइटेड के अंदर सीएए और एनआरसी विरोधी चिंगारी गति पकड़ने लगी है। प्रशांत किशोर और पवन वर्मा जैसे नेताओं के बाद जदयू के कई विधायको ने चुनाव से पहले सुरक्षित ठिकाना ढूंढना शुरू कर दिया है।

इसी क्रम में जनता दल यूनाइटेड के एमएलसी जावेद इक़बाल अंसारी कुछ साथी विधायकों का पैगाम लेकर आज राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव से मिलने रांची पहुंचे। जावेद इक़बाल अंसारी ने लालू यादव से रांची के रिम्स में मुलाकात की।

जावेद इक़बाल अंसारी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का करीबी बताया जाता है। जदयू विधायक की राजद नेता लालू यादव से मुलाकात के बाद चर्चाएं शुरु हो गयी हैं। सूत्रों की माने तो जनता दल यूनाइटेड के कम से कम 10 विधायक चुनाव से पहले पाला बदलने की फ़िराक में हैं।

सूत्रों ने कहा कि जदयू विधायक जावेद इक़बाल अंसारी ने लालू यादव से मुलाक़ात में नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर देशभर में हो रहे प्रदर्शनों का ज़िक्र भी किया। सूत्रों ने कहा कि आने वाले कुछ दिनों में जनता दल यूनाइटेड के कई विधायक नागरिकता कानून के खिलाफ पार्टी छोड़ सकते हैं।

सूत्रों ने कहा कि बिहार में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलीजुली सरकार चला रहे हैं। ऐसे में नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर मोदी सरकार का समर्थन करना उनकी मज़बूरी है लेकिन मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रो से जीतकर आये जदयू विधायकों को इस बात का अंदेशा है कि यदि वे जदयू के टिकिट पर पुनः चुनाव लड़े तो उन्हें अल्पसंख्यक मतदाताओं से विरोध का सामना करना पड़ेगा।

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