अंदर की बात: बीजेपी को सत्ता से रोकने के लिए कांग्रेस ने रखी थी धीमी चाल!
नई दिल्ली(राजाज़ैद)। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शून्य पर सिमट गई लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के चेहरों पर मुस्कराहट बरकरार है। चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता आम दिनों की तरह ही कूल दिखाई दिए।
दिल्ली में पार्टी की बड़ी पराजय के बावजूद चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी की तरफ से अफरातफरी में न कोई रिव्यू बैठक बुलाई गई और न ही पार्टी के अंदर हाहाकार मचा।
इतना ही नहीं पूरे चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी कहीं भी आक्रामक नहीं दिखी। जिस समय भारतीय जनता पार्टी के नेता आधी से अधिक रैलियां कर चुके थे तब पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरीं।
यहाँ अहम सवाल है कि क्या पार्टी के नेताओं को पहले से जानकारी थी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहने वाला है या किसी रणनीति के तहत पार्टी ने चुनाव में अपनी चाल धीमी कर दी।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी करने से पहले एक एनजीओ से आंतरिक सर्वे कराया था। इस आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि यदि दिल्ली विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ तो कांग्रेस 7-8 सीटें जीत सकती है लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले के चलते सेकुलर मतो का विभाजन होगा। इससे सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को होगा और बीजेपी 30 सीटों तक पहुँच सकती है।
सूत्रों की माने तो रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यदि चुनाव की तारीख आते आते बीजेपी के पक्ष में 1 फीसदी या उससे अधिक स्विंग हुआ तो बीजेपी 45 सीटों तक भी पहुँच सकती है। इस रिपोर्ट के आने से ठीक दो दिन पहले ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं और लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार रहे पार्टी के नेताओं से दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ने का आह्वान किया था।
सूत्रों के मुताबिक आंतरिक सर्वे रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव किया। दिल्ली में बीजेपी को सत्ता से रोकने के लिए पार्टी ने सिर्फ दस सीटों पर ही फोकस करने का फैसला किया जिससे सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले को रोका जा सके। सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने अपनी बदली रणनीति के तहत अपने शीर्ष नेताओं की सभाओं और रोड शो में कटौती की। इतना ही नहीं चुनाव की कमान स्थानीय नेताओं के हाथ सौंप दी गई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी को भले ही एक सीट नहीं मिली हो लेकिन वह बीजेपी को राज्यों से कमजोर करने की अपनी रणनीति में बहुत हद तक कामयाब रही। नतीजतन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र के बाद बीजेपी के हाथ से दिल्ली की सत्ता का खवाब भी जाता रहा।