गहराई से: सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद इन सवालो के जवाब तलाश रहे कानून के जानकार

गहराई से: सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद इन सवालो के जवाब तलाश रहे कानून के जानकार

नई दिल्ली(राजा ज़ैद)। अयोध्या में विवादित भूमि के मालिकाना हक पर आये सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर भले ही कोई सीधे तौर पर सवाल न उठा रहा हो लेकिन फैसले के बाद पैदा हुए कुछ सवालो के जबाव देश का मुसलमान अवश्य तलाश रहा है।

अदालत ने कहा कि रामजन्मभूमि न्यास को 2.77 एकड़ ज़मीन का मालिकाना हक़ मिलेगा। वहीं, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या में ही पांच एकड़ ज़मीन दी जाएगी। साथ ही मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाना होगा और इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा का एक सदस्य शामिल होगा।

पहला सवाल: मुस्लिम पक्षकारो को 5 एकड़ ज़मीन क्यों दी जा रही है ? क्या यह मुआवज़ा है ? यदि हां तो किस बात का मुआवजा है। जब विवादित ज़मीन पर मुसलमानो का कोई हक था ही नहीं तो उन्हें मुआवज़ा क्यों दिया जा रहा है ?

दूसरा सवाल: कोर्ट ने अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्षकारो को जिस 5 एकड़ ज़मीन ज़मीन दिए जाने की बात कही है, यह ज़मीन कहाँ है ? मुस्लिम पक्षकारो को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ ज़मीन की पेशकश किस स्थान पर की गयी है ? क्या यह अयोध्या में है या अयोध्या से बाहर है ?

तीसरा सवाल: यदि सरकार कोर्ट का आदेश मानते हुए मुस्लिम पक्षकारो को मस्जिद बनाने के लिए आबादी से दूर ज़मीन देती है तो क्या वहां मस्जिद बनाई जा सकेगी? यदि मस्जिद बना भी दी गयी तो वहां आबादी से दूर मस्जिद में नमाज़ पढ़ने कौन आएगा ?

चौथा सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह कहीं नहीं कहा कि विवादित जगह पर ही भगवान् राम का जन्म हुआ था और हिन्दू पक्षकारो ने तथ्यों से या सबूतों से इसे साबित किया है।

पांचवां सवाल: कोर्ट ने अपने फैसले में बाबरी मस्जिद तोड़ने की कार्रवाई को अवैध और ग़ैरक़ानूनी माना है। यानि कि विवादित स्थल पर सदियों से बाबरी मस्जिद थीं और उसे जबरन ताकत के बल पर ढहाया गया था। जबकि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाये जाने के कोई सबूत नहीं मिले।

छठवां सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में एक ख़ास रिपोर्ट ‘ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन’ का ज़िक्र किया है, जिसमें कहा गया कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर नहीं था। इसके बावजूद कोर्ट ने एएसआई (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) की उन दलीलों को आधार बनाया है जिन्हे कई इतिहासकार ख़ारिज कर चुके हैं।

जिन चार लोगों की टीम ने ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन’ रिपोर्ट तैयार की थी उसमे प्रोफ़ेसर सूरज भान, अतहर अली, आर.एस. शर्मा और डी.एन. झा शामिल हैं। इन चारो लोगों ने अपनी रिपोर्ट में उस मान्यता को ख़ारिज किया, जिसमें कहा जाता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर था।

सातवां सवाल: अयोध्या मामले का फैसला किसने लिखा, इसका कोई ज़िक्र नहीं है। वहीँ1045 पन्ने के फैसले में अंत के 116 पन्नो को लेकर कई भ्रांतियां हैं। कोर्ट ने अंत के 116 पन्नो को परिशिष्ट का नाम दिया है। इस 116 पेज में एक पैराग्राफ में जो लिखा है वह चौंकाने वाला है।

 

इसमें लिखा है कि “हम में से एक ने, उपर्युक्त दलीलों और संज्ञानों से सहमत होते हुए भी, अलग कारण दर्ज किया है कि “क्या विवादित ढांचा हिंदू अनुयायियों की आस्था और विश्वास के मुताबिक भगवान राम की जन्मस्थली है या नहीं”। विद्वान जज के गिनाये कारण परिशिष्ट में दर्ज हैं।”

किसने क्या कहा:

अयोध्या मामले में कोर्ट का फैसला आने के बाद रिपोर्ट के लेखक और जाने-माने इतिहासकार प्रोफेसर डीएन झा ने बीबीसी से बातचीत में फैसले को निराशाजनक बताते हुए कहा कि इसमें हिंदुओं की आस्था को अहमियत दी गई है और फ़ैसले का आधार दोषपूर्ण पुरातत्व विज्ञान को बनाया गया है।

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस पी बी सावंत ने कहा कि पहली बात तो यह है कि उस जगह में ही राम का जन्म हुआ था या नहीं हुआ था इस बारे में कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि मैंने जितना पढ़ा है, उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा कि यह सिद्ध होता है कि विवादित जगह पर ही राम का जन्म हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा मान लिया कि इस जगह पर राम का जन्म हुआ होगा, क्योंकि बहुसंख्य समाज कई सालों से इसी बिंदू पर अपनी बात रखता रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह विचार भी किया कि श्रद्धा से जुड़े इस बिंदू को मान लेने से बरसों पुराना झगड़ा सुलझाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कलीसवरम राज ने टेलीग्राफ से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कहा कि भारत बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहा है, जो संविधान के प्रावधानों से सहमत नहीं है।

उन्होंने कहा कि सबसे विरोधाभासी यह है कि कोर्ट ने बाबरी मस्जिद तोड़ने की कार्रवाई को अवैध और ग़ैरक़ानूनी माना है और फिर उसी को सम्मानित करने की कोशिश की गई. पाँच जजों बेंच ने सर्वसम्मति से बाबरी विध्वंस को अवैध माना और फिर वहां मंदिर बनाने के पक्ष में फ़ैसला भी दिया।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वह इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं ,उन्होंने कोर्ट के फैसले को तथ्यों पर विश्वास की जीत क़रार दिया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय वस्तुत: सर्वोच्च है, लेकिन उससे भी गलती हो सकती है।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब गिलानी ने कहा कि वे इस फैसले से संतुष्ट नहीं है। उन्होंने कहा कि वे बोर्ड के सदस्यों से राय मशविरा करके इस मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस अशोक गांगुली ने अयोध्या मामले में आए फैसले पर असंतोष जाहिर करते हुए सवाल उठाए हैं। जस्टिस गांगुली ने कहा कि अयोध्या में आखिर मस्जिद गिराई गई थी। कोई भी कहेगा कि मुसलमानों की मस्जिद गिराई गई थी।

पूर्व जस्टिस ने कहा कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में अदालत में अभी भी केस चल रहा है। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान जब अस्तित्व में आया तो नमाज यहां पढ़ी जा रही थी। एक वैसी जगह जहां नमाज़ पढ़ी, जहां पर मस्जिद थी, अब इस जगह को सुप्रीम कोर्ट मंदिर के लिए देने को कह रहा है। ये सवाल मेरे दिमाग में उठ रहा है। उन्होंने कहा कि संविधान का एक छात्र होने के नाते फैसले को समझने में मुझे थोड़ी दिक्कत हो रही है।

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