प्राइम टाइम : मथुरा में रामवृक्ष की जगह रहमान होता तो क्या होता ?
ब्यूरो (राजा ज़ैद खान)। यूपी के मथुरा में जो कुछ हुआ वह ख़ुफ़िया तंत्र की बड़ी विफलता है । प्रशासन की नाक के नीचे से होते हुए इतने असलाह जवाहर बाग़ में कैसे पहुंचे ? वहां रहने वालो पर प्रशासन की नज़र क्यों नहीं पड़ी और जवाहर बाग़ में कौन लोग रह रहे हैं उनकी क्या बैकग्राउंड है इसकी जांच क्यों नहीं की गई ? अगर जवाहर बाग में रामवृक्ष यादव की जगह कोई रहमान रह रहा होता तो क्या होता ? यही है आज के प्राइम टाइम का विषय , जिस पर हम गहराई से बात करेंगे ।
जिस जवाहर बाग़ पर कब्ज़ा जमाकर रामवृक्ष यादव और उसके लोग रह रहे थे वह सरकारी ज़मीन थी । रामवृक्ष यादव जनवरी 2014 में अपने 200 समर्थकों के साथ मथुरा आया था और उसने प्रशासन से जवाहर बाग़ पार्क में धरने की अनुमति मांगी थी । प्रशासन ने उसे अनुमति दे दी थी । रामवृक्ष ने अपने साथियों के साथ दो दिनों के धरने की आड़ में धीरे धीरे 270 एकड़ में फैले पार्क पर ही कब्ज़ा जमा लिया ।
पहले वहां एक झोपडी बनाई गई और फिर बाद में पूरे इलाके को एक एक बस्ती में तब्दील कर दिया गया । जवाहर बाग़ इलाके में सुरक्षा कब्ज़ा मज़बूत करने की दृष्टि से गेट भी लगाया गया लेकिन प्रशासन इससे बेखबर रहा । धीमे धीमे इस इलाके में राम वृक्ष ने अपने समर्थकों को जमाना शुरू कर दिया । बताया जाता है कि जवाहर बाग़ को उसने अपने धार्मिक संगठन का हेडक्वार्टर घोषित कर दिया था । इतना सब कुछ होने के बाद भी प्रदेश के ख़ुफ़िया तंत्र को इसकी भनक नहीं लगी और न ही जिला प्रशासन भी उसे हटाने की ज़रूरत समझी ।
धीमे धीमे जवाहर पार्क में रामवृक्ष और उसके समर्थकों की संख्या 4000 का आंकड़ा पार कर गई । उसने वहां रह रहे लोगों को अपना मकसद क्या बताया अभी इसका खुलासा होना बाकी हैं लेकिन सूत्रों से मिल रही जानकारी में कहा गया है कि वह लोगों को सामाजिक भेदभाव और अन्य संवेदनशील मुद्दों को उठाकर भड़काता था ।
पुलिस को जवाहर पार्क में किये गए सर्च ऑपरेशन के दौरान हथियारों और कारतूसों के अलावा ऐसे सबूत मिले हैं कि रामवृक्ष वहां हथियारों की फैक्ट्री चला रहा था और बड़ी तादाद में हथियारों का निर्माण होता था ।
रामवृक्ष और उसके समर्थकों की जो मांगे थी वे अपने आप में अजीब थीं जिन्हे किसी भी तरह पूरा कर पाना किसी भी सरकार के लिए मुमकिन नहीं था । उसकी सबसे बड़ी मांग एक रुपए में एक लीटर पेट्रोल और डीजल, नेताजी के नाम की सोने के सिक्का का प्रचालन और उसे भारत के प्रथम श्रेणी का नागरिक माना जाए थी ।
एक बड़ा सवाल यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद प्रदेश का ख़ुफ़िया तंत्र क्या कर रहा था । जवाहर पार्क में लोगों की तादाद बढ़ने और हथियारों के निर्माण की बात प्रशासन तक क्यों नहीं पहुंची ? अगर रामवृक्ष यादव की जगह कोई रहमान नाम का व्यक्ति इस काम को करता तो प्रदेश सरकार, प्रशासन और देश के पेशेवर मीडिया की क्या भूमिका होती ?
अगर सच में रामवृक्ष की जगह कोई रहमान नामक व्यक्ति ऐसा कुछ करता तो उसको इस स्थति में आने से पहले ही उसके नाम कई आतंकी संगठनों से जोड़ दिए जाते और पेशेवर मीडिया चटकारे ले लेकर मन गढ़न्त कहानियां सुना रहा होता । महज सूत्रों के आधार पर ही उसे बड़ा आतंकवादी करार दे दिया गया होता । आपको याद दिला दें जेएनयू मामले में देश के पेशेवर मीडिया ने उमर खालिद नामक छात्र को भी बिना कारण निशाना बनाया था ।
कई चैनलों पर एंकर को यह कहते सुना और देखा गया कि उमर खालिद का आतंकी कनेक्शन है वह खाड़ी देशो के संपर्क में था और कई वार पाकिस्तान सहित कई खाड़ी देशो की यात्रा कर चूका है । हकीकत में ऐसा कुछ नहीं था , जिस उमर खालिद के आतंकी कनेक्शन बताकर मीडिया खाड़ी देशो की यात्रा करने के ठोस सबूत पेश कर रहा था उस उमर खालिद के पास पासपोर्ट भी नहीं था, उसके कभी कोई विदेश यात्रा पर जाने की कोई सम्भावना ही नहीं उठती । अब अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मथुरा मामले में राम वृक्ष यादव की जगह कोई रहमान नामक व्यक्ति होता तो राज्य सरकार, प्रशासन और मीडिया की आज क्या भूमिका होती ।
आज तक न जाने कितने निर्दोष मुसलमानो को पेशेवर मीडिया में भगवा चश्मा लगाए बैठे पत्रकारों ने सूत्रों के हवाले से खबर बताकर उन्हें आतंकी घोषित कर दिया। सिर्फ मीडिया के गैरज़िम्मेदार रवैये के चलते न जाने कितने निर्दोष मुसलमानो पर आतंकवाद का ठप्पा लग चूका है।
अभी हाल ही में दिल्ली और देवबंद से शक के आधार पर स्पेशल ब्रांच द्वारा उठाये गए मुस्लिम लड़को पर मीडिया ने दिन रात एक कर दिया था । पुलिस जांच से पहले ही मीडिया ने उन्हें आतंकी होने का सर्टिफिकेट दे दिया । हिरासत में लिए गए इन युवको के बारे में एक चैनल ने तो सूत्रों के हवाले से यह दावा भी किया कि ये आतंकी संगठन जैश ऐ मोहम्मद से जुड़े हैं , पेशेवर मीडिया का झूठ यहीं ख़त्म नहीं हुआ अपने झूठ को और पुख्ता करने के लिए यह भी कहा गया कि ये युवक रात में आकर दिल्ली के नामी इलाको की रेकी किया करते थे ।
दो दिन बाद पुलिस ने तो हिरासत में लिए गए सभी युवको को छोड़ दिया लेकिन क्या मीडिया ने उनके बारे में जो प्रचार किया उसे मिटाया जा सकता है ? अब मथुरा प्रकरण पर मीडिया खामोश क्यों है ?