दहेज : एक नासूर, कब होंगी महिलाएं इससे आज़ाद ?

fozia

ब्यूरो(फौजिया रहमान खान द्वारा ) । लातूर के भिसे वाघोली गांव की मोहिनी ने 16 जनवरी को दुपट्टे से फांसी लगाकर अपनी जान दे दी क्योंकि सूखे की मार झेल रहे माता पिता पर मोहिनी अपनी शादी मे दिए जा रहे दहेज के कारण और अधिक बोझ नही डालना चाहती थी।

उसने आत्महत्या करना ही समस्या का समाधान समझा और अपने सुसाइड नोट मे पिता से गुहार लगाई है “वो शराब न पिएं और उसकी मौत के बाद 13वीं या श्राद्ध जैसे कर्मकांडों पर रुपए ज़ाया न करें. यह सब आत्मा की शांति के लिए करते हैं लेकिन मैं अपनी ख़ुशी से यह क़दम उठा रही हूँ. ख़ुशी होगी कि मैंने दहेज़ और शादी पर आपके जो रुपए ख़र्च हो जाते, उन्हें बचाया है. आख़िर कब तक लड़की वाले लड़के वालों के आगे झुकते रहेंगे?”

एक ओर देश की बेटी का अपने पिता से ये सवाल और दुसरी ओर ताकतवर देश के प्रधानमंत्री बराक ओबामा का टाइम मैगजीन मे छपे लेख मे अपनी बेटियों के प्रति ये वाक्य “जो मुझे मेरी बेटियों ने सिखाया है वह यह कि आज की पीढ़ी एक अच्छे संसार की रचना के लिए किसी का इंतजार नही करेगी ये खुद आगे जा रही है” दो अलग अलग पहलुओ को उजागर करता है।

बेशक समाज में बेटियों को रहमत, बरकत, लक्षमी, देवी का दर्जा दिया जाता है लेकिन बेटियों के साथ होने वाले मामले उतने ही बदसूरत हैं जितने खुबसुरत ये शब्द। धन कमाने की ऐसी होड़ मची है कि पर्दा नशीन महिलाओं को अपने घर की चौखट से बाहर न चाहते हुए भी कदम निकालना पड़ रहा है और अब तो हद यह हो गई है कि घर की चौखट ही नहीं बल्कि अपने देश के बाहर अनजान देश, भाषा, संस्कृति और अनजान लोगों के बीच जाने को मजबूर हैं। जिसकी ताजा मिसाल राज्य आंध्र प्रदेश से दी जा सकती है, खबरों के अनुसार “खाड़ी देशों में घरेलू काम करने वाली आंध्र प्रदेश की महिलाएँ वहां के जेलों में जीवन बिताने के लिए मजबूर हैं।

इन पर आरोप है कि इन महिलाओं ने शायद अपने क्रोधी मालिक के दुर्व्यवहार से तंग आकर या फिर वीजा की अवधि समाप्त होने पर वापस आने की कोशिश की थी। आंध्र प्रदेश के कल्याण मंत्री पी रघुनाथ रेड्डी ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखकर इस मामले में पहल करने का अनुरोध किया है, ताकि मजबूर महिलाओं को घर वापस लाया जा सके।

आंकड़ों के अनुसार बहरैन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब, यूएन और ओमान में लगभग 60 लाख भारतीय रहते हैं .रेड्डी ने अपने पत्र में बताया कि इनमें वे महिलाएं भी हैं जिन्होंने एजेंटों के भरोसे पर भारत से तीन गुना अधिक वेतन वाली नौकरी की खातिर अपना गांव छोड़ दिया। मंत्री ने आगाह किया है कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों की महिलाएँ दुकान के सामान की तरह बिक रही हैं। रेड्डी के अनुसार महिलाएँ सऊदी अरब में चार लाख रुपये और बहरैन, संयुक्त अरब अमीरात और कुवैत में महज एक से दो लाख रुपये में बेची जा रही हैं ” ।

हैरान होने और ये सोच कर दामन बचाने की जरुरत नही है कि ये सब सिर्फ आंध्र प्रदेश मे हो रहा है तथ्य यह है कि ये कारोबार हमारे देश मे भी तेजी से बढ़ रहा है उदाहरण स्वरुप पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तर पूर्व के राज्य भी इसमे शामिल हैं।

इन राज्यो मे मात्र पांच दस हजार रुपये में महिलाओं को भेड़-बकरियों की तरह खरीदा और बेचा जा रहा है। और वह भी शादी जैसे पवित्र शब्द और दहेज जैसी बुराई का सहारा लेकर। इस गंभीर समस्या पर काम करने वाली गैर सरकारी संगठन इमपावर पीपुल के अध्यक्ष श्री शफीकुर रहमान खान कम उम्र के बावजूद वह कारनामा अंजाम दे रहे हैं जिसकी सिर्फ प्रशंसा ही नही बल्कि उनकी सहायता भी करनी चाहिए ।

उनके काम का अंदाजा लगाने के लिए राज्यसभा टीवी द्वारा बनाई गई । इस फिल्म का लिंक नीचे दिया गया है । ये फिल्म यहाँ देखी जा सकती है। इस वीडियो को देखने के बाद अंदाजा हो जाएगा कि महिलाओं को अपने ही देश में हर तरह से अनजान बनाकर एक नया नाम “पारो” और “मुल्की” दिया गया है। यह देवदास वाली पारो नहीं बल्कि यहां पारो का मतलब है “पार की गई” यानी कहीं से लाई गई दुल्हन।

वर्तमान समय में लड़कियों के गरीब माता पिता कितने बेबस और लाचार हैं, इसका अंदाजा आसपास के वातावरण को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। माता पिता लड़कीयो को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करते हैं ऐसे मे जितना खर्च लड़को की शिक्षा में होता है उतना ही लड़कियों की शिक्षा में भी होता है लेकिन शिक्षित होने के बाद भी लड़कियों की महत्वपूर्ता कम ही आंकी जाती है। आज लड़कियाँ शिक्षित होकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर और पत्रकार बन रही हैं बावजूद इसके लड़को का ही महत्व अधिक है शायद इसलिए कि लड़कियों को कमजोर माना जाता है और दहेज जैसी प्रथा ने लड़कीयों को कमजोर के साथ बोझ भी बना दिया है।

दहेज के संबंध में प्रसिद्ध पत्रकार और चरखा फिचर्स के डिप्टी एडीटर श्री मोहम्मद अनीस उर रहमान खान कहते हैं ” दहेज समाज के लिए नासूर की तरह है, जो न केवल बढ़ रहा है बल्कि मानवता को भी खत्म कर रहा है यही कारण है कि मीडिया में रोज दहेज के कारण किसी को जलाकर मार डालने की तो किसी को पंखे से लटका देने की खबरे आती हैं, ऐसे लोगों को अपनी बहन, बेटियों और पोतियों का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि उनके बगीचे में भी खुदा ने कुछ महकती कलीयाँ रखी हैं अगर इन कलियों को भी किसी ने ऐसे ही मसल दिया जैसे वह आज किसी के कलीयों को महज कुछ सिक्के के लिए कुचल रहे हैं तो बहुत दर्द होगा “।

इस संबंध में गया जिले के निवासी अजहर खान जो फिलहाल रोजगार के लिए अरब में रहते हैं कहते हैं कि “विवाह आसान होना चाहिए पर लड़के वालों ने मुश्किल बना दिया है जो लोग पैसे वाले हैं वह तो दहेज दे देते हैं लेकिन जिन लोगों के पास पैसा नहीं है उन्हें मुश्किल दौर से गुजरना पड़ता है”। अपने पति के साथ दुबई में रहने वाली व्यापारी महिला सबा कहती है “एक आदमी अपनी बेटी को पढ़ाता लिखाता है और जब बड़ी होती है तो किसी और को दे देता है आप बेटी दे और साथ ही दहेज दे? ऐसा करना बिल्कुल ग़लत है”।

दिल्ली स्थित सैलवोशन एजुकेशन सेंटर की निदेशक बुशरा ने एक सवाल के जवाब में कहा “दहेज की आदत पैसे वाले लोगों ने खराब की है उनके पास पैसा है वह दे देते हैं लेकिन जिनके पास नहीं होता वे बेचारे मजबूर हो जाते हैं। हमें समाज से दहेज की बीमारी को खत्म करना होगा तभी लड़की किसी का सहारा बन सकती है और अगर हम सबने दहेज की बीमारी समाप्त नहीं किया तो रोज कोई न कोई बेटी दहेज का शिकार होगी “।

आज कितनी लड़कियां पढ़ लिखकर भी कुंवारी हैं सिर्फ इसलिए उनके माता-पिता के पास दहेज के लिए पैसे नहीं हैं .पटना से संबंध रखने वाली उच्च शिक्षित नेट क्वालीफाईड एक लड़की ने जब अपनी दर्द भरी कहानी मुझे सुनाई तो मैं भी मजबूर हो गई कि उसकी अनसुनी कहानी औऱ अन्य युवतियों के दर्द को आप तक पहुँचाऊँ जिसने जीवन मे कई संघर्षो के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त की लेकिन दहेज देने मे सक्षम न होने के कारण पारिवारीक जीवन से अबतक वंचित है।

(चरखा फीचर्स)

अपनी राय कमेंट बॉक्स में दें

TeamDigital