इस बार सुल्तानपुर में हैं बीजेपी पर हार का संकट, ये है वजह
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी इस बार पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं। चुनाव से पहले मेनका गांधी का एक वीडियो सामने आया है जिसमे में मुस्लिम समुदाय के लोगों को वोटों के लिए धमकाती दिख रही हैं।
मेनका गांधी मुस्लिम समुदाय के लोगों को साफ़ तौर पर कह रही हैं कि यदि मुसलमानो ने उन्हें वोट नहीं दिया तो वे उनसे काम की उम्मीद भी न रखें। मेनका वीडियो में कहती दिखाई दे रही हैं कि आपके पोलिंग बूथ का जब आएगा रिजल्ट और उस रिजल्ट में 100 वोट निकलेंगे या 50 वोट निकलेंगे, उसके बाद जब आप काम के लिए आएंगे तो वही होगा… समझ रहे हैं आप।”
वहीँ ज़मीनी हकीकत देखें तो इस बार समीकरण मेनका गांधी के पक्ष में नज़र नहीं आ रहे। भले ही मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर सीट नई नहीं हैं। इस सीट पर उनके बेटे वरुण गांधी भी चुनाव जीत चुके हैं।
पिछले 16 साल से सुल्तानपुर सीट बीजेपी के कब्ज़े में रही हैं। आजादी के बाद कांग्रेस यहां 8 बार जीती, लेकिन हर बार चेहरे अलग रहे। इसी तरह से बसपा दो बार जीती और दोनों बार अलग-अलग थे जबकि बीजेपी चार बार जीती जिसमें तीन चार चेहरे शामिल रहे। इस बार सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर समीकरण बदले हुए हैं।
सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें इसौली, सुल्तानपुर, सदर, कादीपुर (सुरक्षित) और लम्भुआ सीटें आती हैं। मौजूदा समय में इनमें चार सीटों पर बीजेपी का कब्जा हैं और महज एक सीट इसौली सपा के पास है।
सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 2352034 है. इसमें 93.75 फीसदी ग्रामीण औैर 6.25 शहरी आबादी है। अनुसूचित जाति की आबादी इस सीट पर 21.29 फीसदी हैं और अनुसूचित जनजाति की आबादी .02 फीसदी है। इसके अलावा मुस्लिम, ठाकुर और ब्राह्मण मततादाओं के अलावा ओबीसी की बड़ी आबादी इस क्षेत्र में हार जीत तय करने में अहम भूमिका रही है। यह जिला फैजाबाद मंडल का हिस्सा है।
पिछले लोकसभा चुनाव में जबकि मोदी लहर का बड़ा असर था तब बीजेपी के वरुण गांधी को 4,10,348(42.51%) वोट मिले, वहीँ बसपा उम्मीदवार पवन पांडेय को 2,31,446(23.98%) वोट और सपा के शकील अहमद को 2,28,144(23.63%) वोट मिले थे। चूँकि इस बार सपा बसपा का गठबंधन है, इसलिए 2014 में सपा बसपा उम्मीदवारों को मिले वोटों को जोड़ा जाए तो कुल वोट 4,59,590(47.61%) वोट होते हैं जो वरुण गांधी को मिले वोटों से अधिक हैं।
यदि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सपा बसपा का वोट एक तरफ पड़ा तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। इस सीट पर सपा बसपा उम्मीदवार के तौर पर चन्द्रभद्र सिंह और कांग्रेस ने डा संजय सिंह को मैदान में उतारा है।
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर अमिता सिंह को उम्मीदवार बनाया था। इसलिए इस सीट पर राजपूत मतदाताओं ने बीजेपी की तरफ रुख कर लिया था लेकिन इस बार कांग्रेस ने कद्दावर डा संजय सिंह को उम्मीदवार बनाया है। ज़ाहिर है डा संजय सिंह जितने वोट लेंगे वो बीजेपी को उतना ही नुकसान करेंगे।
वहीँ सपा बसपा गठबंधन ने भी राजपूत समुदाय चन्द्रभद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जिन्हे सपा के परम्परागत मुस्लिम और बसपा के दलित वोटों के अलावा अपने क्षत्रीय समुदाय के वोट भी मिलेंगे। वहीँ इस बार बीजेपी ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत और ओबीसी मतदाताओं के सहारे अपनी नैया पार करने की कोशिश करेगी।
इस लोकसभा चुनाव में किसी तरह की हवा नहीं है। उल्टा बीजेपी को जनता को 2014 के लोकसभा चुनाव में किये गए ताबड़तोड़ वादों का जबाव भी देना है। जनता मोदी सरकार का 5 साल का कामकाज देख चुकी है। ऐसे में बीजेपी के पास न मुद्दे हैं न हवा है। वहीँ पिछले की तरह इस बार मुस्लिम- दलित वोट के बंटने की गुंजाईश भी न के बराबर ही है। ऐसे हालातो में बीजेपी के लिए हार का खतरा बना हुआ है।