मेरठ में शांति का सबक दे रहे हैं मौलाना ‘चतुर्वेदी’

मेरठ । 130 साल पुराने इस्‍लामिक मदरसे के मौलाना शाहीन जमाली ‘चतुर्वेदी’ का नाम लोगों को चौंका देता है। दरअसल, उनके नाम के आगे जो जाति लगी है, वह हिंदू है। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील उत्‍तर प्रदेश में भाईचारा फैलाने के लिए सम्‍मान स्वरूप उन्हें यह यह उपाधि मिली है।

शाहीन जमाली ‘चतुर्वेदी’ मदरसा इमादादुल इस्‍लाम के शेख-उल-हदीस और प्रिंसिपल हैं। यह मदरसा मेरठ के हिंदू बाहुल सरदार इलाके में स्थि्त है, जिसमें 150 बच्‍चे तालीम लेते हैं। इनमें से ज्‍यादातर छात्र गरीब परिवार से आते हैं। 68 वर्षीय मौलाना का जन्‍म बिहार के चंपारण जिले में हुआ था।

उन्‍होंने प्राथमिक शिक्षा गांव के दारुउ उलूम देवबंद से हासिल की। उन्‍होंने अलीम और मुफ्ती की डिग्री प्रभावशाली मुस्लिम मदसरे से हासिल की। मगर, वह यहीं नहीं रुके। इसके बाद उन्‍होंने कुरान शरीफ में पीएचडी की। इसके बाद उन्‍होंने करीब 45 साल पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और संस्‍कृत में एमए किया।

वह बताते हैं कि एएमयू में संस्‍कृत के प्रति उनकी दीवानगी बढ़ गई। वहां पंडित बशीरुद्दीन के निर्देशन में उन्‍होंने वेद, गीता और हिंदुओं की अन्‍य धार्मिक व आध्‍यात्‍िमक किताबों का अध्‍ययन किया।

उन्‍होंने बताया कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उनके गुरु बशीरुद्दीन को उनके संस्‍कृत के ज्ञान व प्राचीन हिंदू लेखों के ज्ञान के लिए पंडित कहते थे। कर्नाटक में विद्वानों के ऐसे ही एक कार्यक्रम में संस्‍कृत और वेदों पर उनके ज्ञान के कारण उन्‍हें चतुर्वेदी की संज्ञा मिली।

चतुर्वेदी उसे कहा जाता है, जिसे चारों वेदों का ज्ञान हो। वह कहते हैं कि तभी से मेरे नाम के साथ चतुर्वेदी जुड़ गया। वह कहते हैं कि मैं खुद को भाग्‍यशाली मानता हूं कि हिंदू और मुस्लिमों, दोनों से इतना प्‍यार और सम्‍मान मिलता है। आज वह सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतीक बन गए हैं।

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