बाबर की वे अच्छी बातें जिन्हे छिपाना चाहते हैं कुछ इतिहासकार

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ब्यूरो । ज़हीरुद्दीन मोहम्मद बाबर 14 फ़रवरी 1483 को अन्दिजान में पैदा हुए थे, जो फ़िलहाल उज़्बेकिस्तान का हिस्सा है। आक्रमणकारी हों या विजेता, लेकिन ऐसा लगता है कि बाबर के बारे में आम तौर से लोगों को न तो अधिक जानकारी है और न ही दिलचस्पी ।

मुग़ल सम्राटों में अकबर और ताज महल बनवाने वाले शाहजहाँ के नाम सब से ऊपर हैं लेकिन जैसा कि प्रसिद्द इतिहासकार और पूर्व जेएनयू प्रोफेसर हरबंस मुखिया कहते हैं, ”बाबर का व्यक्तित्व संस्कृति, साहसिक उतार-चढ़ाव और सैन्य प्रतिभा जैसी ख़ूबियों से भरा हुआ था । ”

मुखिया कहते हैं कि अगर बाबर भारत न आता तो भारतीय संस्कृति के इंद्रधनुष के रंग फीके रहते । उनके अनुसार भाषा, संगीत, चित्रकला, वास्तुकला, कपड़े और भोजन के मामलों में मुग़ल योगदान को नकारा नहीं जा सकता ।

हरबंस मुखिया कहते हैं कि यह आम ग़लतफ़हमी है कि अयोध्या की विवादास्पद बाबरी मस्जिद बाबर ने बनवाई थी । उनके मुताबिक़, बाबरी मस्जिद का ज़िक्र उसके ज़िंदा रहने तक या उसके मरने के कई सौ साल तक नहीं मिलता ।

बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई में जीत की ख़ुशी में पानीपत में ही एक मस्जिद बनवाई थी, जो आज भी वहीँ खड़ी है । इतना ही नहीं बाबर दुनिया के पहले शासक थे, जिन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी । बाबरनामा उनके जीवन की नाकामियों और कामयाबियों से भरी पड़ी है ।

भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक क़ाबुल निवासी को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया था । अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई ।

हरबंस मुखिया के अनुसार बाबर की सोच थी कि कभी हार मत मानो. उन्हें समरक़ंद (उज़्बेकिस्तान) हासिल करने का जुनून सवार था । उन्होंने समरक़ंद पर तीन बार क़ब्ज़ा किया, लेकिन तीनों बार उन्हें शहर से हाथ धोना पड़ा । अगर वे समरक़ंद का राजा बने रहते तो शायद काबुल और भारत पर राज करने की कभी नहीं सोचते ।

भारत में भले बाबर को वो सम्मान नहीं मिला, जो उनके पोते अकबर को मिला था, लेकिन उज़्बेकिस्तान में बाबर को वही दर्जा हासिल है जो भारत में अकबर को दिया जाता है ।

उनकी किताब के कई शब्द भारत में आम तौर से प्रचलित हैं जैसे ‘मैदान’ शब्द का भारत में पहली बार इस्तेमाल बाबरनामा में देखने को मिला । प्रोफ़ेसर हरबंस मुखिया कहते हैं कि आज भी भारत में बोली जाने वाली भाषाओँ में तुर्की और फ़ारसी शदों का प्रयोग आम है । उन्होंने 1930-40 में राज करने वाले एक मराठी हाकिम का उदाहरण देते हुए कहा कि उसने अपनी भाषा में उर्दू और फ़ारसी शब्दों से पाक करने के लिए एक फ़रमान जारी किया ।

उनके एक सलाहकार ने कहा कि हुज़ूर ‘फ़रमान’ समेत आपके फ़रमान में इस्तेमाल किए गए 40 प्रतिशद शब्द फ़ारसी और उर्दू के हैं । प्रोफ़ेसर मुखिया के अनुसार तुर्क भाषा में कविता लिखने वाली दो बड़ी हस्तियां गुज़रीं, उनमें से एक बाबर थे ।

बाबर योग्य शासक होने के साथ ही तुर्की भाषा का विद्वान भी था। उसने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ की रचना की, जिसका फ़ारसी भाषा में अनुवाद बाद में अब्दुल रहीम ख़ानख़ाना ने किया।

लीडेन एवं अर्सकिन ने 1826 ई. में ‘बाबरनामा’ का अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद किया। बेवरिज ने इसका एक संशोधित अंग्रेज़ी संस्करण निकाला। इसके अतिरिक्त बाबर को ‘मुबइयान’ नामक पद्य शैली का जन्मदाता भी माना जाता है। इसके अतिरिक्त बाबर ने ‘खत-ए-बाबरी’ नामक एक लिपि का भी अविष्कार किया।

बाबर की कठोरता की मिसालें मिलती हैं, लेकिन उनकी मृदुलता के भी कई उदाहरण हैं । एक बार वे जंग की तैयारी में लगे थे कि किसी ने उन्हें ख़रबूज़ पेश किया. बाबर ख़ुशी के मारे रो पड़े. सालों से उन्होंने ख़रबूज़े की शकल नहीं देखी थी ।

बाबर 12 वर्ष की उम्र में राजा बने, लेकिन 47 साल की उम्र में मरते दम तक वे युद्ध में जुटे रहे । इसके बावजूद बाबर ने पारिवारिक ज़िम्मेदारियां निभाईं । उनकी ज़िन्दगी पर माँ और नानी का गहरा असर था जिन्हें वे बेइंतहा प्यार करते थे । वे अपनी बड़ी बहनके लिए एक आदर्श भाई थे ।

मुग़ल बादशाह हुमांयूं बाबर के सबसे बड़े बेटे थे । उनके लिए बाबर एक समर्पित पिता थे. हुमांयूं एक बार बहुत बीमार पड़ गए. बाबर ने बीमार हुमांयू के जिस्म के तीन गर्दिश किए और ख़ुदा से दुआ मांगी कि उनके बेटे को स्वस्थ कर दे और उसकी जगह पर उनकी जान ले ले । हुमांयू तो ठीक हो गए. लेकिन कुछ महीनों में बाबर बीमार हुए और उनकी मौत हो गई ।

बाबर के शव को पहले आगरा के आरामबाग में दफनाया गया, बाद में काबुल में उसके द्वारा चुने गए स्थान पर दफनाया गया । जहां उसका मकबरा बना हुआ है , उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं मुग़ल बादशाह बना ।

(इनपुट बीबीसी हिंदी से भी)

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