आत्म निर्भरता के सवाल पर शिवसेना ने मोदी सरकार को गिनाईं 60 साल की उपलब्धियां

आत्म निर्भरता के सवाल पर शिवसेना ने मोदी सरकार को गिनाईं 60 साल की उपलब्धियां

मुंबई। बीजेपी की पुरानी सहयोगी शिवसेना ने मोदी सरकार द्वारा एलान किये गए 20 लाख करोड़ रुपये के पॅकेज पर चुटकी ली है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सरकार से सवाल किया है कि जिस आत्म निर्भरता की बात की जा रही है तो क्या अब तक भारत आत्मनिर्भर नहीं था?

सामना में आर्थिक पॅकेज को लेकर कई सवाल खड़े किये गए हैं। शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में मोदी सरकार से पूछा गया है कि 20 लाख करोड़ रुपये का प्रबंध कैसे किया जाएगा? पार्टी ने अपने मुखपत्र में कहा कि एक ऐसा माहौल तैयार करने की ज़रूरत है जहां उद्योगपतियों, कारोबारियों और बिजनेस क्षेत्रों को निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

सामना में कहा गया कि आत्मनिर्भरता के इस नए रास्ते पर भारत उद्योगपतियों के देश से बाहर चले जाने को वहन नहीं कर सकता है और इसके लिए कुछ समय तक ‘प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी राजनैतिक संस्थाओं पर विराम लगाया जाना चाहिए।

शिवसेना ने कहा कि देश को बताया जा रहा है कि यह पैकेज लघु, छोटे और मध्यम प्रतिष्ठानों, गरीब श्रमिकों, किसानों और आयकर देने वाले मध्य वर्ग को फायदा पहुंचाएगा।

सामना में कहा गया है कि केंद्र सरकार के अनुसार यह पैकेज 130 करोड़ भारतीयों तक पहुंचेगा और देश आत्मनिर्भर बनेगा, क्या इसका मतलब यह है कि भारत मौजूदा समय में आत्मनिर्भर नहीं है?

सामना में कहा गया कि आज़ादी से पहले भारत में एक सूई का भी उत्पादन नहीं होता था लेकिन 60 वर्षों में भारत विज्ञान, तकनीक, कृषि, कारोबार, रक्षा, उत्पादन और परमाणु विज्ञान क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना। तब पंडित नेहरू थे, आज मोदी हैं। यदि राजीव गांधी ने डिजिटल इंडिया की नींव नहीं रखी होती, तो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अधिकारी आज कोरोना संकट के ‘अस्पृश्य’ माहौल में वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संवाद नहीं कर रहे होते। यह देश संघर्ष, मेहनत और स्वावलंबन नामक तीन सूत्रों पर ही खड़ा है।

संपादकीय में प्रवासी मजदूरों को लेकर चिंता जताते हुए कहा गया कि किसानों और मेहनतकशों को फिर से खड़ा होना ही पड़ेगा। कोई यह नहीं बता सकता कि २० लाख करोड़ के पैकेज में से कितनी बूंदें उन तक पहुंचेंगी। देशभर के प्रमुख शहरों के लाखों मजदूर पैदल ही अपने राज्यों के लिए निकल पड़े हैं। यह राज-व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता है।

सामना के संपादकीय में विदेशो से नौकरी छोड़कर आ रहे लोगों का हवाला देते हुए कहा गया कि जो लोग अपनी नौकरी गंवाने के बाद अमेरिका जैसे देशों से यहां आए हैं और जो लोग ‘वंदे भारत मिशन’ की सरकारी योजना के तहत यहां आए हैं, वे इस तरह की शारीरिक मेहनत का काम नहीं करेंगे। तो उन श्रमिकों को ये २० लाख करोड़ का सपना क्या देगा?

वहीँ अर्थव्यवस्था को लेकर मुखपत्र में कहा गया कि कोरोना से पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था खराब हो चुकी थी। एयर इंडिया और भारत संचार निगम जैसे बड़े सरकारी प्रोजेक्ट मौत की कगार पर थे। सरकार उन्हें शुरू रखने के लिए 4000 करोड़ रुपए का वित्तीय पैकेज देने की भी हालत में नहीं थी। अगर जेट विमान कंपनी को 500 करोड़ का सहारा दिया गया होता तो इससे वह उद्योग और वहां के लोगों की नौकरियां बच जातीं। इस परिप्रेक्ष्य में सरकार 20 लाख करोड़ कहां से जुटाएगी?

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