बिहार में प्रशांत किशोर लिखेंगे बीजेपी-जेडीयू की हार की पटकथा !
नई दिल्ली। नागरिकता कानून और एनआरसी के मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड में सवाल खड़े करने के बाद पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद प्रशांत किशोर ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए रणनीतिकार की भूमिका निभाई।
दिल्ली के बाद देश के एक और अहम राज्य बिहार में इस वर्ष के अंत तक चुनाव होना है। अभी से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर आवाज़ उठाने वाले प्रशांत किशोर बिहार के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस वाले गठबंधन के लिए रणनीतिकार का काम कर सकते हैं।
राष्ट्रीय जनता दल सूत्रों की माने तो प्रशांत किशोर पार्टी के अंदर आकर रणनीति की कमान संभाल सकते हैं। सूत्रों ने कहा कि पिछले दिनों जनता दल से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर राजद और कांग्रेस नेताओं के सम्पर्क में हैं। कांग्रेस नेता शत्रुध्न सिन्हा, कीर्ति आज़ाद, तारिक अनवर, राजद सांसद मनोज झा सहित बिहार के कई कद्दावर चेहरों से उनकी मेल मुलाकातों का सिलसिला जारी है।
ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रशांत किशोर बिहार को लेकर जल्द ही अपने पत्ते खोलेंगे। प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड जॉइन करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने लगे थे लेकिन नागरिकता कानून और एनआरसी के मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड द्वारा मोदी सरकार का समर्थन किये जाने को लेकर उन्होंने पार्टीफोरम से बाहर सवाल खड़े किये थे।
बिहार में इस बार नीतीश के लिए बड़ी चुनौती वे विधानसभाएं होंगी जिनमे मुस्लिम मतदाताओं की तादाद अधिक है। पिछले विधानसभा चुनाव में सेकुलर चेहरे के आधार पर नीतीश कुमार इन विधानसभाओं में अपने उम्मीदवार जिताने में सफल रहे थे लेकिन इस बार स्थति पहले की तुलना में बहुत बदल चुकी है।
इस बार बिहार में नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना है। नागरिकता कानून के मुद्दे पर संसद में मोदी सरकार का समर्थन किये जाने से बिहार का अल्पसंख्यक मतदाता नीतीश से पहले ही नाराज़ है। वहीँ पार्टी के कई विधायक चुनाव से पहले सुरक्षित स्थान की तलाश में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस में अपना ठिकाना ढूंढ रहे हैं और मुमकिन है कि चुनाव से पहले कई विधायक नीतीश का साथ छोड़कर अन्य दलों में शरण ले लें।
ऐसी स्थति में इस वर्ष होने वाले चुनाव में प्रशांत किशोर बिहार में जेडीयू-बीजेपी की पराजय की पटकथा अवश्य लिख सकते हैं। हालाँकि अभी चुनाव में करीब 9-10 महीने का समय बाकी हैं। राजनीति में स्थितियां कभी भी बदल सकती हैं लेकिन सच्चाई यह भी है कि राज्यों में चुनाव दर चुनाव पराजय झेल रही बीजेपी का मनोबल भी लगातार कमजोर हो रहा है। उपलब्धियों के नाम पर गिनाने के लिए न बीजेपी के पास कुछ है और न ही नीतीश कुमार के पास। देखना होगा कि जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आएगा बिहार की राजनीति में क्या क्या परिवर्तन आते हैं।