बीजेपी के आगे नतमस्तक रहेंगे नीतीश या छोड़ेंगे साथ ?

बीजेपी के आगे नतमस्तक रहेंगे नीतीश या छोड़ेंगे साथ ?

पटना ब्यूरो। बिहार विधानसभा चुनाव के सभी 243 सीटों के परिणाम आने के बाद राष्ट्रीय जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आई है। वहीँ दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी है और दोनों में सिर्फ एक सीट का फासला है। एनडीए को 125 सीटों के साथ सरकार बनाने के लिए बहुमत मिल चुका है। वहीँ महागठबंधन को 110 सीटें मिली हैं।

दलगत स्थिति पर नज़र डालें तो एनडीए को मिलीं 125 सीटों में से जनता दल यूनाइटेड को 43 सीटें, बीजेपी को 74 सीटें,वीआईपी को 04 सीटें और हम को 04 सीटें मिली हैं। वहीँ महागठबंधन को मिली 110 सीटों में राष्ट्रीय जनता दल को 75 सीटें, कांग्रेस को 19 सीटें और वामपंथी दलों को 16 सीटें मिली हैं।

इसके अलावा लोकजनशक्ति पार्टी को 01 सीट, बहुजन समाज पार्टी को 01 सीट तथा एआईएमआईएम को 05 सीटें मिली हैं। वहीँ एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार विजयी रहे हैं।

वोट शेयर की बात करें तो राष्ट्रीय जनता दल को 23.1%, बीजेपी को 19.5%, जेडीयू को 15.4%, कांग्रेस को 9.5%, लोक जनशक्ति पार्टी को 5.66%, बसपा को 1.49% और एआईएमआईएम को 1.24%, मिले हैं।

एनडीए को बहुमत,नीतीश बनेगे मुख्यमंत्री:

चुनावी तस्वीर साफ़ होने के बाद एनडीए के पास बहुमत के लिए ज़रूरी 122 सीटों से 03 सीटें अधिक हैं। इसलिए फ़िलहाल यह तय माना जा रहा है कि बिहार में एनडीए की सरकार बन रही है और नीतीश कुमार 7वीं बार फिर मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।

इस बार आसान नहीं है एनडीए की राह:

बिहार में भले ही एनडीए की सरकार बन जाए लेकिन इस बार मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार की राहें आसान नहीं होंगी। जानकारों की माने तो एनडीए के पास बहुमत से सिर्फ 03 सीटें अधिक हैं। इसमें जीतनराम मांझी की हम और मुकेश साहनी कोई वीआईपी पार्टी की 04-04 सीटों का समर्थन भी शामिल हैं।

अहम बात है कि इस बार जेडीयू की सीटें बीजेपी से काफी कम हैं। इसलिए सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालय बीजेपी के खाते में जाना तय है। अधिक सीटें होने के कारण बीजेपी सरकार पर अपना पूरा दबाव बनाकर रखेगी। यहां सवाल उठता है कि किया नीतीश कुमार दबाव स्वीकार करेंगे ?

वहीँ हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। वे कब एनडीए छोड़कर अलग खड़े हो जाएँ, ये कोई नहीं जानता। जीतनराम मांझी की अपनी महत्वाकांक्षाएं रही हैं और वे सौदेबाज़ी करने से नहीं चूकते।

बिहार सरकार में भले ही लोक जनशक्ति पार्टी शामिल न हो लेकिन मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी एनडीए में शामिल है। वीआईपी ने चार सीटें जीती हैं। मुकेश सहनी को लेकर भी दावे से नहीं कहा जा सकता कि वे पांच साल तक एनडीए में खामोश बैठे रहेंगे।

जानकारों की माने तो मंत्रिमडंल का विस्तार होने से पहले ही बहुत कुछ साफ़ हो जाएगा। अभी राजद सुप्रीमो लालू यादव की रिहाई भी होनी है। उसके बाद बिहार की राजनीति में उठापटक होना तय है। इसलिए 7वीं बार मुख्यमंत्री बन रहे नीतीश कुमार की राहें इस बार सबसे जटिल होना भी तय है।

बीजेपी का दिया ज़ख्म मज़बूरी में स्वीकार:

बिहार चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने जिस तरह नीतीश कुमार की घेराबंदी की और जदयू के खिलाफ उम्मीदवार मैदान में उतारे, उसे नीतीश कुमार जल्द नहीं भूल पाएंगे। हालांकि नीतीश कुमार यह समझ चुके हैं कि बीजेपी की शह पर ही चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला था। कम सीटें होने के कारण बीजेपी को अपने कंधे पर ढोना और दबाव झेलना इस बार नीतीश की मज़बूरी अवश्य है लेकिन नीतीश राजनीति के मंजे हुए खिलाडी हैं।

नीतीश कुमार ने शरद यादव जैसे धुरंधर नेता को राजनीति में किनारे लगा दिया और खुद जनता दल यूनाइटेड पर कब्ज़ा जमा लिया। इसलिए नीतीश कुमार भविष्य की राजनीति को देखते हुए कभी भी कोई पैतरेबाज़ी कर सकते हैं। अपनी इसी पैतरेबाजी के कारण उन्होंने महागठबंधन सरकार को बीच में ही छोड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।

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