बिहार में बिगड़ रहे एनडीए के समीकरण
पटना ब्यूरो। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए में रार पैदा हो गई है। एनडीए में शामिल राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को अब भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड पर भरोसा नहीं रहा। यही कारण है कि पार्टी एनडीए छोड़ने की शर्त पर सुरक्षित ठिकाना तलाश कर रही है।
पिछले करीब एक महीने से बिहार के राजनैतिक हलकों में इस बात को लेकर गंभीर चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी नहीं चाहते कि लोक जनशक्ति पार्टी को विधानसभा चुनाव तक एनडीए में बनाये रखा जाए। इसकी अहम वजह लोक जनशक्ति पार्टी नेता चिराग पासवान द्वारा पिछले दिनों सीटों के बंटवारे का मुद्दा उठाना है।
चिराग पासवान चाहते हैं कि एनडीए में घटक दल होते हुए उनकी पार्टी को विधानसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटें मिलें। वहीँ जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी इस बार विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी को अपने साथ लेने के मूड में नहीं दिख रहे।
हालांकि नीतीश और सुशील मोदी जानते हैं कि पासवान परिवार का बिहार के कुछ इलाको में दलित मतदाताओं पर अभी भी ख़ासा प्रभाव है और विधानसभा चुनाव में लोकजनशक्ति पार्टी को एनडीए से बाहर रखने का मतलब दलितों के बीच इस बात का सन्देश देगा कि बीजेपी और जेडीयू दलितों का सम्मान नहीं करते।
वहीँ दूसरी तरफ सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि चिराग पासवान कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के सम्पर्क में आ चुके हैं और वे महागठबंधन में शामिल होकर जीतनराम मांझी की पार्टी का विकल्प बन सकते हैं।
गौरतलब है कि जीतन राम मांझी कई बार राष्ट्रीय जनता दल को अल्टीमेटम दे चुके हैं। अभी हाल ही में उन्होंने सीटों का जल्द बंटवारा करने के लिए राजद को 26 जून तक अल्टीमेटम दिया था। जिसके बाद राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से जारी बयान में कहा गया था कि पार्टी जीतनराम मांझी का सम्मान करती है लेकिन वे धमकियां देना बंद करें।
सूत्रों ने कहा कि जैसे जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं वैसे वैसे एनडीए के दलों में फासला भी बढ़ता जा रहा है। लोकजनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल कोरोना काल में विधानसभा चुनाव कराये जाने के पक्षधर नहीं हैं। वहीँ जेडीयू और बीजेपी को चुनाव की जल्दी है।
सूत्रों की माने तो बीजेपी और जेडीयू इसलिए भी जल्द चुनाव चाहते हैं जिससे कोरोना महामारी के नाम पर विपक्ष को चुनाव प्रचार करने का मौका न मिले और विपक्ष को चुनाव में नीतीश सरकार को घेरने का मौका न मिल सके।
जानकारों की माने तो यदि पारम्परिक तौर पर चुनाव हुए तो लॉकडाउन में पैदल चलकर आये प्रवासी मजदूरों के अलावा अपना काम धंधा खो चुके लोग एनडीए के लिए चुनाव में मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। इतना ही नहीं नीतीश सरकार को सरकार विरोधी लहर का सामना भी करना सकता है लेकिन इसके लिए मतदाताओं से विपक्ष का संवाद होना बेहद ज़रूरी है, जो कि कोरोना महामारी के कारण संभव नहीं हो पा रहा है।