CAA के खिलाफ पार्टी के अंदर से आवाज़ उठने के बाद जदयू ने की NPR फार्म में बदलाव की मांग
नई दिल्ली। नागरिकता कानून पर जनता दल यूनाइटेड द्वारा मोदी सरकार का समर्थन किये जाने के बाद पार्टी के अंदर से उठी आवाज़ को थामने के लिए जदयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने आवाज़ बुलंद करने वाले पार्टी के नेताओं प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया हो लेकिंन इसके बाद भी पार्टी के अंदर सीएए और एनपीआर को लेकर पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है।
सूत्रों की माने तो जनता दल यूनाइटेड के कुछ नेताओं ने सीएए पर पार्टी द्वारा मोदी सरकार का समर्थन किये जाने पर असहमति प्रगट की है। इतना ही नहीं नेताओं ने नीतीश को दो टूंक शब्दों में कहा है कि यदि सीएए और एनपीआर पर पार्टी ने अपने रुख में बदलाव नहीं किया तो वह सत्ता में वापसी का सपना न देखें।
गौरतलब है कि बिहार में इस वर्ष के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि सीएए और एनपीआर के मुद्दे पर पार्टी के अंदर की उठापटक को देखते हुए जनता दल यूनाइटेड ने एनपीआर के फार्म में कुछ बिंदुओं में बदलाव किये जाने की मांग की है।
जेडीयू की ओर से ललन सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एनडीए की बैठक में यह मांग उठाई। बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में ललन सिंह ने कहा कि उन्होंने बैठक में एनपीआर फार्म के कुछ बिंदुओं में बदलाव का मुद्दा उठाया और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया कि इस मामले पर चर्चा की जाएगी।
वहीँ इससे पहले मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी पटना में एक संवादाता सम्मेलन में कहा था कि एनपीआर में नए प्रश्नों को जोड़ने के बाद भ्रम की स्थिति बनी है, खासकर माता-पिता का जन्म और उम्र और इस जानकारी की कोई ज़रूरत नहीं है।
नीतीश कुमार ने कहा कि गरीब लोगों को मालूम नहीं होता कि उनके माता-पिता कहां पैदा हुए इसलिए जो पुराने सवालों की लिस्ट है उसी पर अमल किया जाना चाहिए। नीतीश ने कहा था कि लोकसभा और राज्यसभा में उनकी पार्टी के संसदीय दल के नेता इस बारे में अपनी बात रखेंगे।
हालाँकि नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर नीतीश ने तर्क दिया कि हमे इसपर उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतज़ार करना चाहिए। गौरतलब है कि नागरिकता कानून और एनपीआर को लेकर करीब 150 याचिकाएँ सुप्रीमकोर्ट में दायर की गई हैं। कोर्ट ने इन याचिकाओं पर 22 जनवरी को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था तथा इन याचिकाओं पर चार हफ्ते बाद सुनवाई करने का फैसला सुनाया था।