सुप्रीमकोर्ट में बहस जारी, फ्लोर टेस्ट के लिए मांगी दो हफ्ते की मोहलत
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में बागी विधायकों के इस्तीफे के बाद पैदा हुए सियासी संकट के बीच बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान द्वारा तुरंत फ्लोर टेस्ट कराये जाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीमकोर्ट में आज तीसरे दिन भी सुनवाई जारी है।
सुप्रीमकोर्ट में आज शुरू हुई सुनवाई में कमलनाथ सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि दलबदल कानून के तहत 2/3 का पार्टी से अलग होना जरूरी है। अब इससे बचने के लिए नया तरीका निकाला जा रहा है।
उन्होंने कहा कि 15 लोगों के बाहर रहने से हाउस का दायरा सीमित हो जाएगा। यह संवैधानिक पाप के आसपास होने का तीसरा तरीका है। ये मेरे नहीं अदालत के शब्द हैं। सिंघवी ने कहा कि बागी विधायकों के इस्तीफे पर विचार के लिए दो हफ्ते का वक्त देना चाहिए।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह स्पीकर का अधिकार है कि वह चुने कि किसे इस्तीफा स्वीकार किया जाना है और किसका नहीं। स्पीकर के फैसले में कोई दखल नहीं दे सकता है।
इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम कोई रास्ता निकालना चाहते हैं। ये केवल एक राज्य की समस्या नहीं है, बल्कि ये राष्ट्रीय समस्या है। आप यह नहीं कह सकते कि मैं अपना कर्तव्य तय करूंगा और दोष भी लगाऊंगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम उनकी स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए परिस्थितियों बना सकते हैं कि इस्तीफे वास्तव स्वैच्छिक है। हम एक पर्यवेक्षक को बेंगलुरु या किसी अन्य स्थान पर नियुक्त कर सकते हैं। वे आपके साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर जुड़ सकते हैं और फिर आप निर्णय ले सकते हैं।
इसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक का आदेश पढ़ा। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक के आदेश स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देता कि वो कब तक अयोग्यता पर फैसला लें, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि फ्लोर टेस्ट न हो। कर्नाटक के मामले में अगले दिन फ्लोर टेस्ट हुआ था और कोर्ट में विधायकों की अयोग्यता के मामले को लंबित होने की वजह से फ्लोर टेस्ट नहीं टाला था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत जो उभरता है, उसमें अविश्वास मत पर कोई प्रतिबंध नहीं है, क्योंकि स्पीकर के समक्ष इस्तीफे या अयोग्यता का मुद्दा लंबित है इसलिए हमें यह देखना होगा कि क्या राज्यपाल उसके साथ निहित शक्तियों से परे काम करें या नहीं। एक अन्य सवाल है कि अगर स्पीकर राज्यपाल की सलाह को स्वीकार नहीं करता है तो राज्यपाल को क्या करना चाहिए। एक विकल्प है कि राज्यपाल अपनी रिपोर्ट केंद्र को दें।
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर सदन सत्र में नहीं है और यदि सरकार बहुमत खो देती है तो राज्यपाल को विश्वास मत रखने के लिए स्पीकर को निर्देश देने की शक्ति है। क्या होगा जब विधानसभा को पूर्व निर्धारित किया जाता है और सरकार अपना बहुमत खो देती है? राज्यपाल फिर विधानसभा नहीं बुला सकते? चूंकि इसे अनुमति नहीं देना का मतलब अल्पमत में सरकार जारी रखना होगा।
इस पर अभिषेक मनु सिंघवी 14 मार्च की राज्यपाल की चिट्ठी की भाषा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, ‘राज्यपाल ने लिखा है कि 22 विधायकों ने इस्तीफा भेजा है, मैंने भी मीडिया में देखा, मुझे भी चिट्ठी मिली, सरकार बहुमत खो चुकी है।’
सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल ने खुद ही तय कर लिया? इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि अगर सरकार अल्पमत में है तो क्या राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट कराने की शक्ति है। इस पर सिंघवी ने कहा कि नहीं, वह नहीं करा सकते. उनकी शक्ति सदन बुलाने के बारे में है।
खबर लिखे जाने तक सुप्रीमकोर्ट में बहस जारी है। माना जा रहा है कि इस मामले में सुप्रीमकोर्ट आज अपना फैसला सुरक्षित रख सकता है अथवा देर शाम तक फैसला सुना सकता है।