सरकार पहले भी चला सकती थी ट्रेन, बच सकती थी मारे गए प्रवासी मजदूरों की जान
नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने 12 मई से 15 यात्री ट्रेनों के संचालन का फैसला लिया है। इन 15 ट्रेनों के लिए आज शाम चार बजे से बुकिंग शुरू हो जाएगी। टिकिटों की बुकिंग आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर होगी। ये सभी ट्रेन स्पेशल ट्रेन होंगी जिन्हें नई दिल्ली से देश के अलग-अलग 15 हिस्सों में चलाया जाएगा।
यात्री ट्रेनों के शुरू होने से लॉकडाउन के दौरान अपने घरो से दूर फंसे लोगों के लिए घर पहुंचने का रास्ता तो साफ़ हो गया है लेकिन अब सवाल यह है कि सरकार ने यह फैसला लेने में इतनी देरी क्यों लगाई ?
अब सरकार के पास ऐसी कौन सी उपलब्धि है कि उसने विशेष ट्रेन चलाये जाने की अनुमति दे दी। सरकार चाहती तो इसी प्रक्रिया के तहत 25 से 31 मार्च के बीच भी विशेष ट्रेन चला सकती रही जबकि आंकड़ों को देखा जाए तो कोरोना संक्रमित मरीजों की तादाद 25 मार्च से 31 मार्च की तुलना में कई गुना बड़ी है।
देश के विभिन्न राज्यों में फंसे लाखो प्रवासी मजदूरों को लेकर सरकार ने संवेदनशीलता नहीं दिखाई। यदि सरकार समय से निर्णय ले पाती तो पैदल चलने के कारण मारे गए प्रवासी मजदूरों की जान बच सकती थी।
हालांकि ऐसा नहीं है कि देशभर में प्रवासी मजदूरों के फंसे होने की बात सरकार की जानकारी में नहीं थी। देशभर में लॉकडाउन के प्रथम चरण के दौरान ही प्रवासी मजदूरों ने अपने घर वापस जाने की गुहार विभिन्न माध्यमों के द्वारा सरकार तक पहुंचाई थी। कई प्रवासी मजदूरों ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर अपनी पीढ़ा बताई।
इतना ही नहीं अपने घरो को वापस जाने के लिए 27 और 28 मार्च को दिल्ली के आनंद बिहार बस टर्मिनल पर लाखो की तादाद में प्रवासी मजदूर जमा हुए थे। इसके बावजूद सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया।
28 मार्च को देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की तादाद 873 थी,जबकि यह तादाद 31 मार्च को 1251 हो गयी थी। जब देश में संक्रमित मरोजो की तादाद मामूली सी थी सरकार पब्लिक ट्रांसपोर्ट चलाने को लेकर कोई फैसला नहीं ले सकी अब जबकि 11 मई को देशभर में कोरोना संक्रमित मरीजों के 67,152 मामले सामने आ चुके हैं जिनमे 44,029 सक्रिय हैं तब सरकार ने ट्रेन चलाने का फैसला लिया है।
आश्चर्य की बात यही है कि जो फैसला अब से डेढ़ महीने पहले लिया जा सकता था, उस फैसले को उसी तरह तब लिया जा रहा है जबकि देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की तादाद पहले से करीब 60 गुना ज़्यादा हो चुकी है।