1930 की महामंदी के बाद यह सबसे बुरा साल, कई देशो में भीषण मंदी का संकट
नई दिल्ली। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक की सालाना बैठक से पहले विश्व अर्थव्यवस्था की प्राथमिकताओं के विषय पर बोलते हुए आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टलीना जॉर्जगीवा ने गुरुवार को कहा कि 1930 के दशक की महामंदी के बाद 2020 विश्व अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बुरा साल साबित हो सकता है।
उन्होंने कहा कि आज विश्व अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है। कोरोना वायरस लोगों का जीवन ले रहा है और इससे बचने के लिए किए गए लॉकडाउन से अरबों लोग प्रभावित हुए हैं।
आईएमएफ प्रमुख ने कहा, “तीन महीने पहले हमें लगता था कि हमारे 160 से ज्यादा सदस्य देशों में प्रति व्यक्ति आय इस वर्ष बढ़ेगी। अब हमें लगता है कि 170 से ज्यादा देशों में प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आएगी।
उन्होंने कहा कि अधिकांश देशों में ज्यादातर लोग या तो स्वरोजगार वाले हैं या छोटी मझोली कंपनियों में नौकरी करते हैं। इन लोगों के लिए खतरा सबसे ज्यादा है।
आईएमएफ प्रमुख ने कहा कि पिछले 2 महीने के दौरान विकासशील देशों के बाजार से करीब एक सौ अरब डॉलर का पोर्टफोलियो निवेश बाहर गया है। यह 2008-09 के वित्तीय संकट की तुलना में करीब 3 गुना है। कमोडिटी निर्यातकों को दोहरा नुकसान हो रहा है। एक तो उन्हें कीमत कम मिल रही है दूसरे निर्यात के बदले भुगतान की भी समस्या है।
भीषण मंदी की चपेट में कई देश :
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने कोरोना वायरस महामारी को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि वैश्विक व्यापार में 2020 में एक तिहाई गिरावट आने की आशंका है।
डब्ल्यूटीओ ने एक बयान में कहा, ‘‘विश्व व्यापार में 2020 में 13 प्रतिशत से 32 प्रतिशत की गिरावट आने की आशंका है। इसका कारण कोरोना वायरस महामारी के कारण सामान्य आर्थिक गतिविधियां तथा जीवन के बुरे तरीके से प्रभावित होना है।”
वहीँ कोविड-19 की वजह से यूरोपीय संघ की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश जर्मनी और फ्रांस घोर मंदी का सामना कर रहेे हैंं। कोरोना वायरस महामारी की वजह से उत्पादन दशकों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है।
डब्ल्यूटीओ के प्रमुख रॉबर्टो अजेवेदो ने वैश्विक मंदी की चेतावनी देते हुए कहा कि हम गहरी मंदी के भंवर में जा सकते हैं। अपने मुख्य वार्षिक पूर्वानुमान में, 164 सदस्यीय डब्ल्यूटीओ ने बताया कि 2019 में कोविड-19 की वजह से व्यापार की गति धीमी हो चुकी है।
1970 के शुरु में जर्मनी में होने वाली मंदी के बाद साल 2008-2009 में दूसरी तिमाही में वित्तीय संकट आया था। लेकिन इस बार संकट उससे भी कहीं ज़्यादा बड़ा है और मंदी उससे भी भीषण रहने की आशंका है।