एक्सक्लूसिव: यूपी सरकार की अनुमति के इंतज़ार में 33 घंटे बाद खाली लौटीं प्रियंका की बसें
नई दिल्ली(राजा ज़ैद)। प्रवासी मजदूरों को उनके घरो तक पहुंचाने की कवायद के तहत कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की पहल पर पार्टी द्वारा लगाई गयी बसें 33 घंटे तक योगी सरकार की अनुमति का इंतज़ार करने के बाद रवाना हो गई हैं।
बसों को लेकर पिछले तीन दिनों में हुई राजनीति किसी से छिपी नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस के बस देने के प्रस्ताव को स्वीकार तो किया लेकिन अनुमति देने के लिए तीन दिनों तक टहलाया जाता रहा।
इतना ही नहीं बसों की सूची को लेकर प्रदेश सरकार ने जिस तरह का रवैया दिया उससे साफ़ हो गया कि प्रदेश सरकार बसों को अनुमति देने के मूड में ही नहीं थी। तीन दिन तक चली इस टालमटोल के बीच उत्तर प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों और नेताओं के गैरज़िम्मेदाराना बयान भी सामने आये।
सबसे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने कांग्रेस से बसों की लिस्ट और ड्राइवर-परिचालकों की जानकारी मांगी। जानकारी मिलने के बाद कहा गया कि बसों को लखनऊ लाया जाए जिससे इनकी फिटनेस की जांच हो सके। इसके बाद नया मामला खड़ा किया गया कि 1049 बसों की सूची में सिर्फ 879 बसें हैं बाकी टू व्हीलर, थ्री व्हीलर, एम्बुलेंस आदि के नंबर डाल दिए गए हैं।
सियासत जब ब्रांडिंग बनने लगे तो फिर वह सियासत नहीं रह जाती। यहाँ सवाल प्रवासी मजदूरों के ज़ख्मो का न होकर ब्रांडिंग का बन गया और इस ब्रांडिंग के ढक्क्न पर सील कोई नहीं लगा पाया। जिस ब्रांडिंग का फायदा प्रवासी मजदूरों को मिलना चाहिए था वह उससे महरूम रह गए।
यहीं से सरकार का मूड सामने आ गया। यदि सरकार प्रवासी मजदूरों को लेकर गंभीर होती तो यह भी कह सकती थी कि प्रतिदिन 200 बसें भेजकर 05 दिनों में एक हज़ार बसों का इस्तेमाल कर प्रवासी मजदूरों को घर पहुँचाया जाएगा। सरकार के सामने यह विकल्प भी था कि वह सिर्फ 500 बसें भी इस्तेमाल कर सकती थी लेकिन सरकार ने इस मामले में उदासीनता दिखाई।
बसों के इस्तेमाल के लिए कांग्रेस की तरफ से लगातार अपीलें जारी होती रहीं लेकिन सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जबाव नहीं मिला और अंत में 33 घंटे तक इंतज़ार के बाद बसें खाली ही वापस लौट गयीं।
कांग्रेस द्वारा प्रवासी मजदूरों के लिए लाई गई बसों पर प्रवासी मजदूर तो सवार नहीं हो सके लेकिन राजनीति अवश्य सवार हो गयी। पूरे देश ने देखा कि बसों को लेकर तीन दिनों तक किस तरह की राजनीति हुई।
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने वीडियो लिंक के माध्यम से संवाददाताओं से कहा, ‘‘ पिछले चार दिनों में हमने जो ओछी राजनीति देखी है उससे मन खट्टा हो गया है। क्या योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए उनकी राजनीति ही सब कुछ है? क्या श्रमिकों का दर्द उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है?’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने झूठ बोला। प्रदेश और केंद्र की सरकार ने मजदूरों से मुंह फेर लिया। इससे ज्यादा राष्ट्रविरोधी कुछ नहीं हो सकता।’’
सुप्रिया ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश प्रशासन ने खुद माना कि 879 बसें सही थीं। अगर ये बसें चलाई जातीं तो अब तक 92 हजार लोगों को उनके घर भेज दिया जाता। लेकिन योगी सरकार ने राजधर्म से मुंह मोड़ा है।’’
बसों की लिस्ट में कांग्रेस क्यों खा गई गच्चा:
कांग्रेस सूत्रों की माने तो जिन एक हज़ार बसों की बात कही गई थी उसमे 750 बसें राजस्थान से 250 बसें यूपी से जुटाई जानी थीं। राजस्थान की गहलोत सरकार ने बसों की व्यवस्था कर भरतपुर बॉर्डर होते हुए बसों को भेजा लेकिन वे बसें आगरा से पहले ही यूपी पुलिस ने रोक दीं। वहीँ उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेताओं पर 250 बसें जुटाने की ज़िम्मेदारी थी।
इस 250 बसों की लिस्ट में ही गड़बड़झाला निकली। सूत्रों की माने तो जिन कांग्रेस नेताओं को बसें भेजने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। उन्हें इस बात की उम्मीद नहीं थी कि यह लिस्ट उत्तर प्रदेश सरकार जांच के लिए परिवहन विभाग को भेज सकती है। इसलिये उन्होंने तादाद पूरी करने के लिए उसमे कुछ बसों के नंबर फ़र्ज़ी डाल दिए।
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बसों की सूची में हेरफेर मिलने पर कड़ी नाराज़गी जताई है और वे जल्द इस मामले में उत्तर प्रदेश के कई नेताओं को तलब करेंगी।
हालाँकि यह पहला अवसर नहीं है। वर्ष 2013 में राहुल गांधी उत्तर प्रदेश के अलीगढ में सभा को संबोधित करने पहुंची थीं। इस दौरान स्थानीय नेताओं को भीड़ जुटाने के लिए बसें लगवाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। बसों का पैसा प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने दिया था। इसमें भी ऐसा ही हुआ कि एक कांग्रेस नेता ने अपनी बसों की जो लिस्ट पार्टी को सौंपी उसमे कई बसों के नंबर फ़र्ज़ी पाए गए थे। इस मामले में जांच के लिए बनी टीम का नेतृत्व कर रहे उत्तराखण्ड के एक पार्टी विधायक तथा अन्य नेता जांच के लिए अलीगढ भी पहुंचे थे। हालाँकि बाद में यह मामला दब गया।