दिल्ली चुनाव में पता चलेगा अमित शाह कितने चाणक्य ?
नई दिल्ली (राजा ज़ैद)। दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए तारीख का एलान हो गया है। राज्य की 70 विधानसभाओं के लिए 8 फरवरी को मतदान होगा। इस बार विधानसभा चुनाव में बहुत कुछ बदला हुआ दिखेगा।
कभी बीजेपी का हिस्सा रहे उदित राज, कीर्ति आज़ाद और शत्रुघ्न सिन्हा इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए प्रचार करते नज़र आएंगे। इतना ही नहीं इस बार चुनाव में 15 वर्ष तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित की गैर मौजूदगी कांग्रेस को अवश्य खलेगी।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में न सिर्फ आम आदमी पार्टी की कड़ी परीक्षा होगा बल्कि उससे भी बड़ी परीक्षा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की होगी। पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में सिर्फ तीन सीटें ही मिली थीं।
इसके बावजूद बीजेपी नेता अभी से दिल्ली में अपनी प्रचंड बहुमत वाली सरकार का सपना संजोये बैठे हैं। दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी पिछले 20 वर्षो से अधिक समय से सत्ता से बाहर है। ऐसी स्थति में राज्य में बीजेपी की सरकार बना पाना आसान नहीं लगता।
हालांकि मीडिया अमित शाह को चुनावी चाणक्य के तौर पर प्रमोट करती रही है लेकिन सच्चाई यह भी है कि अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद यदि बीजेपी को कई राज्यों में सत्ता हासिल हुई है तो कई राज्यों में उसके हाथ से सत्ता गई भी है।
हाँ ये अलग बात है कि अमित शाह सत्ता के खेल में माहिर हैं। गोवा सहित कुछ राज्यों में पार्टी के पास बहुमत न होने के बावजूद बीजेपी वहां सरकार बनाने में सफल रही है लेकिन महाराष्ट्र में शरद पवार की गुगली को अमित शाह नहीं झेल पाए और राज्य में सत्ता के करीब पहुंचकर बीजेपी गच्चा खा गई।
दिल्ली की अभी की स्थति को देखें तो आमआदमी पार्टी के सामने सरकार में वापसी की चुनौती है तो केंद्र में सरकार होने के कारण बीजेपी के सामने खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती है। वहीँ कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए वह जितनी भी सीटें जीतें, उसे लाभ ही होगा।
अन्य राज्यों के चुनाव की तरह बीजेपी भले ही बड़े दावे क्यों न करे लेकिन पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह कितने चाणक्य है यह दिल्ली के परिणाम तय करेंगे।
स्थानीय के साथ साथ राष्ट्रीय मुद्दे पकड़ेंगे जोर:
दिल्ली में अधिकांश विधानसभा सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बन रही है। जानकारों की माने तो चुनाव प्रचार के दौरान स्थानीय मुद्दों की तुलना में राष्ट्रीय मुद्दे चुनाव का रुख मोड़ सकते हैं। इसमें सबसे ज़्यादा लाभ कांग्रेस को हो सकता है क्यों कि इस बार उसके तरकश में केजरीवाल सरकार से जुड़े स्थानीय मुद्दों के अलावा केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना भेदने के लिए तीर मौजूद होंगे।
वहीँ बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बारे में कहा जा रहा है कि ये दोनों पार्टियां चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे पर निशाना साधने में व्यस्त रहेंगी। जहाँ आम आदमी पार्टी कई मुद्दों पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरेगी वहीँ बीजेपी स्थानीय मुद्दों को उठाकर आप की घेराबंदी करेगी।