चिराग पर सॉफ्ट है राजद, नीतीश पर सॉफ्ट है कांग्रेस, ये है वजह
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पटना ब्यूरो। बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए बुधवार को 16 जिलों की 71 सीटों पर मतदान होना है। जहां एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव एक दूसरे पर निशाने साध रहे हैं वहीं इन सब से अलग कांग्रेस नीतीश कुमार और चिराग पासवान को लेकर सॉफ्ट बनी हुई है।
हालांकि राजद नेता तेजस्वी यादव भी चिराग पासवान पर हमला करने से बच रहे हैं। वे चुनावी सभाओं में अपने भाषणों को राज्य सरकार की नाकामियों और युवाओं को रोज़गार पर ही फोकस कर रहे हैं। तेजस्वी यादव अपने भाषणों में चिराग पासवान का ज़िक्र तक नहीं कर रहे।
कांग्रेस की तरह राजद भी चुनाव बाद के परिदृश्य को ध्यान में रखकर चिराग पासवान पर हमले नहीं कर रही। जानकारों की माने तो चिराग पासवान के लिए कांग्रेस और राजद दोनों के दरवाज़े अभी खुले हैं। यदि चुनाव बाद ऐसी स्थति पैदा हुई जिसमे चिराग पासवान फिर बैठते हों तो कांग्रेस-राजद चिराग पासवान को अपने मंच पर लाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
बीजेपी को सत्ता से बेदखल करना मकसद:
जानकारों की माने तो राजद अपने पहले राजनीतिक दुश्मन के तौर पर जदयू और दूसरे पर बीजेपी को रखकर चल रही है। मकसद जदयू-बीजेपी को सत्ता से बाहर करना है। वहीँ कांग्रेस अपना पहला राजनीतिक दुश्मन बीजेपी को मानकर चल रही है। यही कारण है कि कांग्रेस की तरफ से नीतीश कुमार को लेकर कोई निजी हमला नहीं किया जा रहा। कांग्रेस चुनाव बाद का परिदृश्य देख रही है। जिसमे एकबार फिर नीतीश कुमार की भूमिका हो सकती है।
सर्वे से अलग से है ज़मीनी हकीकत:
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर आये चुनावी सर्वेक्षण ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रहे। ज़मीनी हकीकत कुछ और कह रही है। चुनावी जानकार अभी से यह मानकर चल रहे हैं कि बिहार में त्रिशंकु विधानसभा की स्थति भी पैदा हो सकती है और ऐसी स्थति में छोटे दलों की भूमिका अहम हो जाएगी।
चुनावी जानकारों की माने तो बसपा-एआईएमआईएम और रालोसपा को मिलकर बना गठबंधन सिर्फ वोट कटवा साबित होगा। इस गठबंधन में किसी दल को कोई सीट मिलने की संभावना नहीं है। हालांकि जानकारों का कहना है कि पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप) कई सीटों पर खेल बिगाड़ सकती है इसलिए पप्पी यादव को हल्के में लेना भूल साबित हो सकती है।
राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। ज़रूरत पड़ने पर बड़े बड़े राजनैतिक प्रतिद्वंदी भी गले मिल लेते हैं और बिहार की राजनीति में यह पहले हो चुका है। खासकर बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने की शर्त पर राजद और कांग्रेस किसी भी हद तक जा सकते हैं।
ऐसे हालातो में यह तय है कि यदि राजद-कांग्रेस और बांम दलो के गठबंधन की सीटें कम आईं तो नीतीश को बीजेपी के साथ जाने से रोकने के लिए कांग्रेस बड़ा दांव खेल सकती है या यह भी संभव है कि खुद नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मारें और फिर से राजद की शरण में पहुंच जाएँ।
हालांकि इस बार ऐसी संभावनाएं बेहद कम ही हैं कि राजद नीतीश कुमार को समर्थन देने के लिए हाथ बढ़ाये लेकिन कांग्रेस जिस तरह नीतीश कुमार को लेकर सॉफ्ट है उसे देखकर लगता है कि यदि नीतीश बीजेपी से दमन छुड़ाना चाहेंगे तो कांग्रेस उन्हें समर्थन करने से पीछे नहीं हटेगी।
फिलहाल ये सभी कयास हैं। बिहार की नई राजनैतिक तस्वीर कैसी होगी, ये परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ज़मीन पर कहीं भी चुनाव एकतरफा नहीं है। आधे से अधिक सीटों पर कांटे की टक्कर है।