बीजेपी का इस्तीफा कार्ड: इस डर्टी पॉलिटिक्स से निपटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती

बीजेपी का इस्तीफा कार्ड: इस डर्टी पॉलिटिक्स से निपटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती

नई दिल्ली(राजा ज़ैद)। पिछले कुछ वर्षो में राजनीति के अंदर एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। इसमें विधायकों से इस्तीफा दिलाकर, चुनी हुई सरकार गिरा दी जाती है और इस्तीफा देने वाले विधायकों को भारतीय जनता पार्टी अपने यहां एंट्री देती है और उन्हें उपचुनाव में पार्टी का टिकिट दे देती है। ज़ाहिर है कि यह बिना धनबल या प्रलोभन के संभव नहीं है।

अगर किसी पार्टी का एक-दो विधायक इस्तीफा देता है तो समझ आता है लेकिन दर्जनों विधायकों के पहले रिजॉर्ट में छिपने और उसके बाद विधानसभा की सदस्यता से सामूहिक इस्तीफे देना इस बात का बड़ा संकेत है कि यह सब एक अचानक ही नहीं होता बल्कि पूरी प्लानिंग के साथ की गई डर्टी पॉलिटिक्स का हिस्सा है।

अगर विधायकों के इस्तीफे देने की घटना किसी एक राज्य में हुई हो तो भी इसे संयोग माना जा सकता है लेकिन जब एक ही तरह की राजनीति को लगातार दोहराया जा रहा है तो फिरइसे संयोग नहीं बल्कि प्रयोग ही कहा जाएगा।

अभी हाल ही के यदि कुछ मामलो को देखा जाए तो कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस की चुनी हुई सरकार और मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार का पतन सिर्फ इसलिए हुआ क्यों कि सत्तारूढ़ दल के विधायकों ने बड़ी तादाद में सामूहिक इस्तीफे दिए और वे बीजेपी में शामिल हो गए। वहीँ गुजरात, जहाँ कांग्रेस विपक्ष में हैं, राज्य सभा चुनाव से पहले कांग्रेस के 8 विधायकों से इस्तीफा दिलाकर उन्हें घर बैठा दिया गया।

सत्ता के इस खेल में चुनाव आयोग और न्याय पालिका ने अपनी भूमिका का सही से पालन नहीं किया। अगर संवैधानिक संस्थाएं ईमानदारी से अपनी भूमिका अदा करती तो शायद बीजेपी की इस्तीफा राजनति इस देश पर हावी नहीं होती।

इस पूरी डर्टी पॉलिटिक्स पर विपक्ष पूरी तरह बंटा हुआ है, जिसका लाभ बीजेपी को मिलता है। बीजेपी के इस्तीफा कार्ड से निपटने के लिए विपक्ष ने कभी बैठकर चर्चा ही नहीं की। जहां तक देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का सवाल है तो वह खुद इसका तोड़ नहीं ढूंढ पाई है।

यही कारण है कि कर्नाटक में गठबंधन सरकार गिरने के बाद भी पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया और मध्य प्रदेश में भी अपनी सरकार गंवा बैठी। वहीँ बीजेपी के लिए अब यह खेल आसान होता जा रहा है।

कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती:

इस समय कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती जनाधार में कमी नहीं है बल्कि बीजेपी के इस्तीफा कार्ड से निपटने की है। यदि पार्टी इसका तोड़ नहीं ढूंढ पाती तो उसे ये मान लेना चाहिए कि उसका भविष्य अंधकार की तरफ बढ़ रहा है। यदि कांग्रेस ने कर्नाटक में विधायकों के इस्तीफे के बाद कोई कदम उठाया होता तो आज राजस्थान में सचिन पायलट विधायकों को लेकर एक रिजॉर्ट में डेरा डालने की हिम्मत नहीं कर पाते।

यदि यही हाल रहा तो भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और विपक्ष के अच्छे प्रदर्शन के बाद भी यह गारंटी नहीं कि उस राज्य में गैर बीजेपी सरकार कितने दिन चलेगी। इसलिए यदि पार्टी इस चुनौती से निपटने को अपनी प्राथमिक नहीं बनाती तो चुनावो में उसके द्वारा की गई मेहनत पर कभी भी पानी फिर सकता है।

ज़्यादा सॉफ्ट हो गई है कांग्रेस:

बीजेपी के आक्रमक होने के पीछे कांग्रेस की बढ़ती सॉफ्टनेस है। पिछले 6 सालो में यह बात साफ़ तौर पर सामने आई है कि पार्टी बीजेपी के खिलाफ मिले बड़े मुद्दों को भुनाने में असफल रही है। फिर यह मामला राफेल डील का हो, चीन से सीमा विवाद का हो या ताजा मामला पीएम केयर्स फंड का हो।

कांग्रेस की सॉफ्ट राजनीति के पीछे दो अहम कारण हैं। पहल बड़ा कारण आक्रमण करने में अनुभवी नेताओं को पार्टी ने हाशिये पर रख दिया है। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मुद्दे को ज़ोर शोर से उठाते हैं लेकिन उस मुद्दे को और आक्रामक ढंग से आगे पहुंचाने वाले नेताओं की कमी है।

हालांकि पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में पवन खेड़ा, प्रो गौरव बल्ल्भ और सुप्रिया श्रीनेत ने टीवी पर काफी असरदार बहस की हैं लेकिन ये बहस सिर्फ टीवी तक ही सीमित हैं। बहस में उठाये गए मुद्दों को ज़मीन तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस के पास कोई प्रबंध नहीं है। अंततः बड़े मुद्दे भी टीवी पर डिबेट के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।

पिछले 6 वर्षो में देश में जो हालात बने हैं, यदि उन हालातो पर कांग्रेस पूरी आक्रामकता से पेश आये तो बीजेपी के सांसदों का अपने क्षेत्रो में निकलना मुश्किल हो जाएगा।

फिलहाल यह देखना है कि क्या कांग्रेस बीजेपी की इस्तीफा पॉलिटिक्स के खिलाफ कोई अभियान शुरू करती है अथवा नहीं। लेकिन एक बात बेहद साफ़ तौर पर कही जा सकती है कि यदि कांग्रेस समय रहते नहीं जाएगी तो उसे भविष्य में सत्ता पाने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।

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