कृषि कानून पर अंतिम लड़ाई के लिए सुप्रीमकोर्ट पहुंची कांग्रेस

कृषि कानून पर अंतिम लड़ाई के लिए सुप्रीमकोर्ट पहुंची कांग्रेस

नई दिल्ली। रविवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कृषि बिलो को अपनी मंजूरी दिए जाने के बाद कृषि कानून का रास्ता साफ़ हो गया है। वहीँ अब कृषि कानून के खिलाफ कांग्रेस ने सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन की तरफ से सुप्रीमकोर्ट में दायर की गई रिट में कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है। प्रतापन ने मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा अधिनियम, 2020 के किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौते के खिलाफ याचिका दायर की है।

उन्होंने अपनी रिट कृषि कानून को प्रतापन ने धारा 32 की धारा 2, 3, 4, 5, 6, 7, 13, 14, 18 और 19 की संवैधानिकता को चुनौती दी है। टीेंएन प्रतापन का कहना है कि यह कानून असंवैधानिक है।

इससे पहले कृषि बिलो को लेकर कांग्रेस, अकाली दल सहित कई विपक्षी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर कृषि बिलो पर दस्तखत न करने की अपील की थी लेकिन अंततः रविवार को राष्ट्रपति ने कृषि बिलो को अपनी मंजूरी दे दी।

जिन कृषि बिलो को लेकर किसान संगठन विरोध जता रहे हैं,उन बिलो पर अब राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद भी राज्य सभा में बिल पास कराये जाने के तरीके पर सवाल बरकरार हैं।

विपक्ष राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश सिंह की भूमिका पर सवाल उठा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि कृषि बिलो को राज्य सभा में पास कराने के लिए सरकार के पास बहुमत नहीं था। कृषि बिलो पर मत विभाजन से बचने के लिए सरकार की तरफ से वॉइस वोट का दांव चला गया। विपक्ष ने राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश सिंह पर सरकार के साथ मिलीभगत करने के आरोप भी लगाए हैं।

राज्य सभा की फुटेज से उठे सवाल:

विपक्ष के आरोप पर उप सभापति हरिवंश सिंह और सरकार की तरफ से दावा किया गया कि फिजिकल वोटिंग इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि विपक्षी सांसद उस समय अपनी सीटों पर नहीं थे।

हालांकि राज्य सभा की कार्यवाही की फुटेज देखने पर पता चलता है कि फिजिकल वोटिंग की मांग के दौरान विपक्षी सांसद अपनी सीटों पर मौजूद थे और इस दौरान दो सांसदो केके रागेश और त्रिची शिवा ने बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास वापस भेजे जाने और मत विभाजन की मांग की।

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TeamDigital