महाराष्ट्र के एक्सपेरिमेंट को अन्य राज्यों में दोहरा सकती है कांग्रेस

महाराष्ट्र के एक्सपेरिमेंट को अन्य राज्यों में दोहरा सकती है कांग्रेस

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए सहयोगी एनसीपी के साथ शिवसेना को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने वाली कांग्रेस अब अन्य राज्यों में इसी फॉर्मूले को दोहरा सकती है।

पार्टी सूत्रों की माने तो महाराष्ट्र से उत्साहित कांग्रेस नेता भविष्य में अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावो को लेकर अभी से इस तरह की रणनीति पर विचार कर रहे हैं।

सूत्रों की माने तो पार्टी के नेताओं का मन है कि भविष्य में होने वाले अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव पार्टी को दो तरह की रणनीति पहले से तैयार रखनी होगी। पहली रणनीति में यदि पार्टी को बहुमत मिलता है तो पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाये, दूसरी रणनीति में यदि पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो पार्टी पहले से बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए किसी क्षेत्रीय दल को आगे बढ़ाये।

सूत्रों ने कहा कि अगले वर्ष 2020 के शुरू में दिल्ली में और वर्ष के अंत तक बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। दोनों ही राज्यों में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए पार्टी में मंथन शुरू हो गया है।

सूत्रों ने कहा कि दिल्ली और बिहार के चुनाव में यदि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल सत्ता बनाने लायक सीटें हासिल नहीं कर पाए तो ऐसी स्थति पैदा होने पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और बिहार में जनता दल यूनाइटेड दो ऐसे विकल्प हैं जिन्हे बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए समर्थन दिया जा सकता है।

सूत्रों ने कहा कि दिल्ली में पार्टी को उम्मीद है कि उसका प्रदर्शन बेहतर होगा लेकिन यदि उसे सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिला तो पार्टी बीजेपी को सरकार से बाहर रखने का दांव चलेगी।

वहीँ बिहार में मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार की बीजेपी से बढ़ती दूरियों को ध्यान में रखकर पार्टी जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल को फिर से एक मंच पर लाने की कोशिश करेगी।

सूत्रों ने कहा कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आये शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आज़ाद के अलावा एनसीपी से कांग्रेस में आये तारिक अनवर के राजद सुप्रीमो लालू यादव के साथ करीबी संबंध हैं। ज़ाहिर है कि शत्रुघ्न सिन्हा जैसा कद्दावर और तारिक अनवर जैसा अनुभवी नेता लालू और नीतीश के बीच पुल बनाने का काम अवश्य करेंगे।

स्थति जो भी लेकिन फिलहाल महाराष्ट्र में हुए राजनैतिक एक्सपेरिमेंट से यह साबित अवश्य हो गया है कि बीजेपी को बढ़ने से रोकने के लिए कांग्रेस क्षेत्रीय दलों को नेतृत्व देने में नहीं हिचकिचाएगी।

वहीँ जानकारों की माने तो महाराष्ट्र के पूरे प्रकरण से कांग्रेस ने यह भी सीखा होगा कि राजनैतिक मामलो पर फैसले लेने में लेट लतीफी नहीं दिखानी है। यदि शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने के फैसले में कांग्रेस ने देरी नहीं की होती तो न तो मामला सुप्रीमकोर्ट तक जाता और न ही देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले पाते। यह अलग बात है कि अंततः शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब रहे लेकिन यदि कांग्रेस समय से फैसला ले लेती तो इतना समय बर्वाद नहीं होता और न ही विधायकों को इधर उधर शिफ्ट करना पड़ता।

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TeamDigital