चुनाव में नीतीश के सुशासन पर भारी पड़ सकता है शराब बंदी और प्रवासी मजदूरों का दुख

चुनाव में नीतीश के सुशासन पर भारी पड़ सकता है शराब बंदी और प्रवासी मजदूरों का दुख

पटना ब्यूरो। बिहार में इस वर्ष के अंत तक होंने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए जहाँ भारतीय जनता पार्टी ने अपनी चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं वहीँ नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड अभी आत्म मंथन में जुटी है।

बिहार में जहाँ एक तरफ कोरोना का प्रकोप बढ़ने से रोकना नीतीश कुमार के लिए चुनौती है वहीँ दूसरे राज्यों से बिहार वापस आये करीब 30 लाख मजदूरों को काम देना उससे भी बड़ी चुनौती है।

चुनाव विश्लेषकों की माने तो इस बार विधानसभा चुनाव में कोरोना संक्रमण और प्रवासी मजदूरों के मुद्दे सिर चढ़कर बोलेंगे। बिहार में प्रवासी मजदूरों की एक बड़ी तादाद है और अन्य राज्यों से वापस आये अधिकांश मजदूर बिहार में ही रहना चाहते हैं। वैसे भी इस बात की संभावना कम ही है कि अक्टूबर नंवबर के महीने तक कोरोना संक्रमण पूरी तरह समाप्त हो जाए और बिहार के सभी मजदूर जिन राज्यों में काम कर रहे थे, वहां वापस चले जाएँ।

हालाँकि बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में एक बार फिर नीतीश कुमार को चेहरा बनाने का एलान किया है लेकिन अभी न सिर्फ सीटों का बंटवारा बाकी है बल्कि इस गठबंधन को लेकर नीतीश कुमार की अंतिम राय आना भी बाकी है।

जानकारों की माने तो विधानसभा चुनाव में यदि विपक्ष एकजुट होने में सफल रहा तो बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। इसका अहम कारण सिर्फ बिहार के जातीय समीकरण ही नहीं बल्कि बिहार का वो मतदाता भी है जो शराब बंदी के फैसले से नाराज़ है।

यहाँ ये बता देना भी बेहद ज़रूरी है कि बिहार में शराब बंदी खत्म करने के लिए कंफिडेरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक बेवरेज कंपनीज (सीआईएबीसी) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बिहार में शराबबंदी पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। बता दें कि बिहार सरकार ने पांच अप्रैल 2016 को बिहार में शराब के निर्माण, व्यापार, भंडारण, परिवहन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।

जानकारों के मुताबिक, बिहार के शराब माफिया चाहते हैं कि या तो बिहार में शराब बंदी समाप्त की जाए या फिर जेडीयू-बीजेपी सरकार की विदाई तय की जाए। वहीँ अन्य राज्यों से बिहार में वापस आये करीब 30 लाख प्रवासी मजदूर बीजेपी और नीतीश दोनों से नाराज़ हैं।

ऐसे हालातो में सारा दारोमदार विपक्ष की एकजुटता पर निर्भर करेगा। यदि विपक्ष एकजुट हुआ तो उसके तरकश में इतने तीर होंगे कि बीजेपी-जेडीयू को आराम से धराशाही किया जा सकता है लेकिन यदि विपक्ष एकजुट नहीं हुआ तो जातिगत समीकरणों के हिसाब से बिहार का वोट एक बार फिर विभाजित होगा और इसका पूरा फायदा जेडीयू और नीतीश को मिलेगा।

चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक बिहार में कोरोना संक्रमण रोकने में केंद्र सरकार की नाकामी, पीएम केयर्स फंड, प्रवासी मजदूरों की तकलीफें, बिहार की कानून व्यवस्था, सांप्रदायिक सौहार्द जैसे मुद्दे विपक्ष के पास होंगे, वहीँ इन मुद्दों के अलावा शराब बंदी भी एक ऐसा मुद्दा होगा जो परदे के पीछे से जेडीयू-बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा।

अपनी राय कमेंट बॉक्स में दें

TeamDigital