क्या प्लान बी के तहत बीजेपी खेमे में भेजे गए थे अजित पवार ?

क्या प्लान बी के तहत बीजेपी खेमे में भेजे गए थे अजित पवार ?

नई दिल्ली(राजाज़ैद)। महाराष्ट्र में तमाम उठापटक और सस्पेंस के बाद नई सरकार का गठन तो हो गया है लेकिन अभी कई सवाल ऐसे हैं जो आम जनमानस के गले नहीं उतर रहे। इन सवालो में एनसीपी नेता अजित पवार का बीजेपी से मिलना और वापस आना कई शंकाओं को जन्म देता है।

शरद पवार सियासत के वो दिग्गज नेता हैं जो कांग्रेस की तीन पीढ़ियों इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी के अलावा महाराष्ट्र की राजनीति में अहम दखल रखने वाले ठाकरे परिवार में बालासाहब ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे और अब आदित्य ठाकरे तक सभी के साथ मेल मुलाकात का अनुभव रखते हैं।

विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार ने साफ़ तौर पर विपक्ष में बैठने की बात कही थी, अजित पवार को एनसीपी विधायक दल का नेता भी चुना गया लेकिन अचानक जिस तरह अजित पवार ने रातो रात महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला दिया वह गौर करने योग्य है।

एनसीपी नेता अजित पवार को शरद पवार के उत्तराधिकारी के तौर पर जाना जाता है। अजित पवार अचानक ही 22 विधायकों की लिस्ट लेकर बीजेपी खेमे में चले गए थे। जिसके चलते सुबह सुबह महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाकर बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस को राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। लेकिन बाद में अजित पवार एनसीपी में वापस आ गए और उन्हें बाइज्जत पार्टी और शरद पवार ने स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं अजित पवार पर न तो पार्टी की तरफ से कोई कार्रवाही की गई और न ही उनके ओहदे में कमी की गई।

पूरे घटनाक्रम पर नज़र डालें तो पार्टी का ही कोई कद्दावर नेता पार्टी के विधायकों को तोड़कर दूसरे खेमे में ले जाने की कोशिश करे और पार्टी उसे बाइज्जत वापस रख ले, यह आसान नहीं लगता और न ही किसी के गले उतरने वाला है।

अब इस मामले से धीमे धीमे परतें उतरने लगी हैं। राजनीति के जानकार इस पूरे प्रकरण में एक तीसरा नज़रिया भी रखते हैं। जानकारों की माने तो एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने एक बड़ी रणनीति के तहत अजित पवार को बीजेपी खेमे में भेजा। जिससे उन्हें देवेंद्र फडणवीस के हर दांव की जानकारी मिलती रहे।

वहीँ सूत्रों की माने तो यदि अजित पवार को बीजेपी खेमे में नहीं भेजा जाता तो बीजेपी के चाणक्य कांग्रेस-एनसीपी दोनों दलों के विधायकों को तोड़ने में सफल हो जाते। शरद पवार के करीबी सूत्रों ने कहा कि अजित पवार बीजेपी खेमे में पहुंचकर यह जानकारी हासिल कर रहे थे कि बीजेपी अपने बहुमत का जुगाड़ करने के लिए कौन कौन से विधायकों पर डोरे डाल रही है।

सूत्रों ने कहा कि अजित पवार से जानकारी मिलने के बाद ही कई विधायकों को एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने तलब किया था और इसके बाद ही एनसीपी-कांग्रेस और शिव सेना विधायकों की मॉनिटरिंग शुरू की गयी थी।

सूत्रों ने कहा कि अजित पवार एक ख़ास मकसद के साथ बीजेपी खेमे में भेजे गए थे और वे पहले से जानते थे कि अंत में सरकार शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की ही बनेगी। सूत्रों के मुताबिक अजित पवार को यह ख़ास काम सौंपा गया था कि वे बीजेपी खेमे में एंट्री करें, और बीजेपी किस किस विधायक से बात कर रही है उसकी जानकारी एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को दें, हुआ भी ठीक ऐसा ही।

इस पूरे प्रकरण का अंत देखा जाए तो एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का कोई विधायक न टूटपाने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजित पवार इस्तीफा दे देते हैं। अजित पवार अपने चाचा और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से उनके आवास पर मुलाकात करते हैं, शरद पवार उन्हें माफ़ कर देते हैं और अजित पवार पहले की तरह एनसीपी से जुड़ जाते हैं।

अजित पवार के पार्टी में वापस आने पर एनसीपी की सहयोगी शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत अपने बयान में अजित पवार का स्वागत करते हैं और कहते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ा काम किया है। इतना ही नहीं विधानसभा के विशेष सत्र में अजित पवार विधानसभा पहुंचते हैं। शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले उनका स्वागत करती हैं और बधाई देती हैं। विधानसभा में अजित पवार एनसीपी विधायकों के साथ बैठते हैं, कोई ज़िक्र भी नहीं करता कि अजित पवार बीजेपी को समर्थन करने क्यों गए थे ? सब कुछ सामान्य हो जाता है जैसे कुछ हुआ भी नहीं था।

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