पूजा स्थल अधिनियम 1991: वैधता को चुनौती देने वाली याचिका के खिलाफ AIMPLB ने दायर की याचिका

पूजा स्थल अधिनियम 1991: वैधता को चुनौती देने वाली याचिका के खिलाफ AIMPLB ने दायर की याचिका

नई दिल्ली। पूजा स्थल अधिनियम के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका को लेकर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध जताया है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ 11 अक्टूबर को 1991 के कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है।

इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी सुप्रीमकोर्ट का रुख किया है। बोर्ड का कहना है कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 भारतीय राजनीति के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के अनुरूप एक प्रगतिशील कानून है और विभिन्न वर्गों के बीच सद्भाव, सार्वजनिक शांति और शांति को बढ़ावा देता है।

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से सुप्रीमकोर्ट में यह याचिका एमआर शमशाद ने दायर की है। याचिका में पूजा स्थल अधिनियम 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई पर विरोध जताते हुए कहा गया है कि अधिनियम लोगों के किसी भी वर्ग के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है और यह संविधान की मूलभूत विशेषताओं पर आधारित है जिसे संशोधित नहीं किया जा सकता हैं।

याचिका में बाबरी दंगों और 1993 के मुंबई विस्फोटों के बीच लिंक पर श्रीकृष्ण पैनल की टिप्पणी का हवाला दिया है। यह हस्तक्षेप याचिका पूजा स्थल अधिनियम 1991 (Places of worship Act-2091) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीमकोर्ट में अहम सुनवाई से दो दिन पहले दायर की गयी है.

बता दें कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल 12 मार्च को पूजा स्थल अधिनियम 1991 को लेकर एक अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था, इस याचिका में पूजा स्थल अधिनियम 1991के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी गई थी।

1991 का प्रावधान किसी भी पूजा स्थल के धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने और पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में बदलाव करने से रोकता है। अयोध्या में राम मंदिर विवाद को इस प्रावधान से इसलिए अलग रखा गया था क्यों कि यह मामला कानून बनने से पहले कोर्ट में लंबित था।

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TeamDigital