42 साल बाद उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बहाल करने जा रही अग्रिम ज़मानत

42 साल बाद उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बहाल करने जा रही अग्रिम ज़मानत

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में अग्रिम ज़मानत की व्यवस्था को बहाल किया जा रहा है। पिछले 42 वर्षो से अग्रिम ज़मानत की व्यवस्था बंद थी। इसके लिए योगी सरकार ने विधान मंडल सत्र में दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक-2018 पेश होगा। कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है।

यह विधेयक कुछ शर्तों के अधीन होगा जिसके तहत गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी। मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में संपन्न हुई कैबिनेट की बैठक में कुल नौ फैसले हुए।

सरकार के प्रवक्ता और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने बताया कि आपातकाल के दौरान प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (उप्र संशोधन) अधिनियम, 1976 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया था।

अब 42 वर्ष बाद फिर नये संशोधन के साथ यह व्यवस्था बहाल होगी। हालांकि कानूनी रूप देने के लिए विधान मंडल से विधेयक पारित होने के बाद इस पर केंद्र की मंजूरी जरूरी होगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-438 (अग्रिम जमानत का प्रावधान जिसमें व्यक्ति गिरफ्तारी की आशंका में पहले ही न्यायालय से जमानत ले लेता है) में अग्रिम जमानत की व्यवस्था का प्रावधान है। नियमित जमानत के लिए लोगों को पहले जेल जाना पड़ता है, चाहे बाद में उनके खिलाफ दर्ज मुकदमा भले झूठा साबित हो।

खास बात यह है कि देश भर में अग्रिम जमानत का प्रावधान है लेकिन, सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में यह व्यवस्था नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों उप्र सरकार से कहा था कि अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म करने वाले कानून को वापस लिया जाये।

जमानत के लिए अभियुक्त की मौजूदगी जरूरी नहीं प्रस्तावित विधेयक में अभियुक्त का अग्रिम जमानत की सुनवाई के समय उपस्थित रहना आवश्यक नहीं है।

न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत दिये जाने पर केंद्रीय प्रारूप में जो शर्तें न्यायालय के विवेक पर छोड़ी गई हैं, उन्हें प्रस्तावित विधेयक में अनिवार्यतः शामिल किये जाने की व्यवस्था की गई है। इसका प्रस्तावित धारा 438 (दो) में उल्लेख किया गया है।

अग्रिम जमानत के दौरान मुकदमे की विवेचना करने वाले पुलिस अधिकारी के बुलाने पर अभियुक्त को हाजिर होना होगा। विवेचक संबंधित को पूछताछ के लिए जब चाहे बुला सकता है।

जमानत के दौरान अगर अभियुक्त ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी गवाह को धमकाने, तथ्यों से छेड़छाड़, धमकी, प्रलोभन या किसी भी तरह का वादा किया तो विवेचक न्यायालय को अवगत करायेगा। ऐसा करने पर जमानत निरस्त हो जाएगी।

न्यायालय की अनुमति के बिना देश छोड़ने की मनाही अग्रिम जमानत लेने वाले व्यक्ति को न्यायालय की अनुमति के बिना देश छोड़ने की मनाही रहेगी। न्यायालय अग्रिम जमानत पर विचार करते समय अभियोग की प्रवृत्ति, अभियुक्त के पूर्व के आचरण, उसके फरार होने की आशंका या उसे अपमानित करने के इरादे से लगाये गये आरोपों पर विचार कर सकती है।

गैंगस्टर एक्ट जैसे गंभीर अपराधों में नहीं मिलेगी जमानत:

गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। इसके लिए प्रस्ताव में गाइड लाइन निर्धारित की गई है। विधि विरुद्ध क्रिया कलाप (निवारण) अधिनियम 1967, स्वापक औषधि और मन : प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985, शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923, उप्र गिरोहबंद और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 (गैंगस्टर एक्ट) से जुड़े मामलों में यह व्यवस्था लागू नहीं होगी। इसके अलावा जिन अपराधों में मृत्युदंड का आदेश तय हैं, उनमें भी अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।

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TeamDigital