उत्तर प्रदेश: लव जिहाद कानून के तहत 30 दिनों में 35 लोग पहुंचे जेल

उत्तर प्रदेश: लव जिहाद कानून के तहत 30 दिनों में 35 लोग पहुंचे जेल

लखनऊ ब्यूरो। उत्तर प्रदेश में अवैध धर्मांतरण पर रोक लगाने के उद्देश्य से लाये गए अवैध धर्मांतरण रोधी कानून 2020 के तहत महज 30 दिनों में 35 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में 27 नवंबर को अवैध धर्मांतरण रोधी अध्यादेश 2020 को केबिनेट ने मंजूरी दी थी।

अवैध धर्मांतरण रोधी कानून 2020 के तहत सर्वाधिक गिरफ्तारियां एटा और सीतापुर जनपद में हुई हैं। दोनों जनपदों में लव जिहाद के मामले में सात-सात लोगों को जेल भेजा गया है।

वहीँ उसके बाद लव जिहाद कानून के तहत ग्रेटर नोएडा में 4, कन्नौज में 4, शाहजहांपुर और आजमगढ़ जनपद में अब तक तीन-तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बिजनौर से दो और बरेली और हरदोई से एक-एक गिरफ्तारी हुई है।

हालांकि पुलिस द्वारा लव जिहाद के मामले दर्ज करने को लेकर कुछ जगह विवाद भी है। धर्म परिवर्तन कर शादी करने वाली युवती द्वारा अपनी मर्ज़ी से धर्मांतरण की बात स्वीकारे जाने के बावजूद भी लड़के और उसके करीबियों के खिलाफ मामले दर्ज किये गए और जेल भेज दिया गया।

इसी क्रम में मुरादाबाद में धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत दो भाइयों को गिरफ्तार किया गया था, सबूत नहीं मिलने पर सीजेएम कोर्ट के एक आदेश पर दोनों को रिहा कर दिया गया था।

कानून के दुरूपयोग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका:

उत्तर प्रदेश सरकार के अवैध धर्मांतरण रोधी कानून 2020 के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका भी पहुंच चुकी है। याचिका में इलाहबाद हाईकोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया गया है जिसमे कोर्ट ने कहा है कि दो बालिग शादी कर सकते हैं. कोर्ट ने धर्म बदलकर शादी करने को जायज बताया है। कोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद से जीवन साथी व धर्म चुनने का अधिकार है।

याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विवाह के लिए धर्म परिवर्तन को लव जिहाद की श्रेणी में मानते हैं जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल बैंच इसे ख़ारिज कर चुकी है और विवाह के लिए अपनी पसंद से जीवन साथी व धर्म चुनने को अधिकार हर व्यक्ति का अधिकार बताया गया है।

12 दिसंबर को हाईकोर्ट में दायर की गई इस याचिका में सलामत अंसारी केस का हवाला देते हुए कहा गया है कि यह अध्यादेश जीवन के अधिकार अनुच्छेद- 21 का भी उल्लंघन करता है। अध्यादेश जीवन के अधिकार अनुच्छेद 21का भी उल्लंघन करता है। इस याचिका पर अभी सुनवाई होना बाकी है।

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