हार्दिक फेक्टर के अलावा ये है दूसरी परेशानी, गंभीर चिंतन में हैं बीजेपी के 44 सिटिंग एमएलए
अहमदाबाद। गुजरात चुनाव को लेकर ओपिनियन दिखाने वाले न्यूज़ चैनलों का दावा है कि यदि गुजरात में पाटीदारो और कांग्रेस में बात बन गयी तो भी बीजेपी को कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा वहीँ हमे जो जानकारियां मिली हैं उसके अनुसार बीजेपी के 44 विधायक ऐसे हैं जो हार्दिक फेक्टर के अलावा भी एक और कारण से गंभीर चिंतन कर रहे हैं।
गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर किये गए एक सर्वे के दौरान एक बड़ा सच सामने आया है जिससे हार्दिक फेक्टर बीजेपी के लिए चिंताएं बढ़ाने वाला साबित हो रहा है।
दरअसल कभी दूर दूर रहने वाले पटेल और कारडिया राजपूतो के बीच बढ़ती नजदीकियों से बीजेपी ज़्यादा परेशान है। कभी पटेलों की तरह बीजेपी का परम्परागत वोट बैंक रहे कारडिया राजपूतो का भी बीजेपी से मोह भंग हो चुका है, साथ ही कारडिया राजपूत समुदाय के लोग पाटीदारो की एकता से बेहद प्रसन्न बताये जाते हैं।
जानकारों की माने तो यदि पाटीदारो के साथ कारडिया राजपूतो ने भी बीजेपी से अपना हाथ खींच लिया तो कम से कम 75 सीटें खतरे में पड़ सकती है। वहीँ इन 75 सीटों में 44 सीटें ऐसी हैं जिन पर बीजेपी के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। इन सभी 44 सीटों पर बीजेपी के सिटिंग एमएलए हैं और संभवतः उन्हें पार्टी फिर से उम्मीदवार बनाएगी।
कारडिया राजपूतो की ये नाराज़गी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष जीती वाघाणी को लेकर है। जानकारी के अनुसार जीतू वाघाणी भावनगर में पुराने शिपो (जहाज) की स्क्रेप के काम से जुड़े हैं और उन पर आरोप है कि उन्होंने एक गाँव से जुडी ग्राम पंचायत की ज़मीन लेने के लिए सरपंच दानसंग मोरी पर दबाव डाला था। जिसके बाद इस गाँव के कुछ लोगों पर केस भी दर्ज कराये गए थे।
लोगों का कहना है कि ज़मींन न देने के चलते बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के दबाव में पुलिस द्वारा गाँव के कारडिया राजपूतो पर झूठे मुकदमे दर्ज किये गए थे।
कारडिया राजपूत ओबीसी कोटे में आते हैं और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर से खासे प्रभावित हैं। अल्पेश ठाकोर हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं। उनकी ओबीसी मतदाताओं में अच्छी पैंठ बताई जाती है।
कारडिया राजपूत यूँ तो पूरे गुजरात में फैले हुए हैं लेकिन गुजरात के कम से कम 6 -7 जिलों में इस समुदाय के मतदाताओं की अच्छी तादाद है। इन जिलों में भावनगर, पाटण, बनासकांठा, राजकोट, जूनागढ़, सुरेंद्रनगर और कच्छ आदि शामिल हैं।
वहीँ जानकारों की माने यदि हार्दिक पटेल और कांग्रेस में बात नहीं भी बनी तब भी पाटीदार कम से कम बीजेपी को वोट नहीं देंगे। हालाँकि हार्दिक पटेल के पास भी कांग्रेस के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं बचा है। कल पाटीदारो के प्रतिनिधियों और कांग्रेस अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी के बीच हुई वार्ता से फिलहाल पाटीदार संतुष्ट हैं।
पाटीदारो की पांच में से 4 मांगो पर कांग्रेस के साथ सहमति बन गयी है लेकिन आरक्षण की अहम मांग पर एक बार फिर दोनो पक्षों की बैठक होगी। कल पाटीदारो और कांग्रेस के बीच हुई बैठक के बाद अब पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के तेवर भी ढीले पड़े हैं।
सूत्रों की माने तो हार्दिक पटेल अपने साथी पाटीदार नेताओं को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि यदि कांग्रेस सत्ता में आयी तो पाटीदारो को अन्य कई लाभ मिल सकते हैं।
फिलहाल पाटीदारो और ओबीसी से वोटबैंक को पैदा हो रहे खतरे को भांपते हुए बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। वह अब देशभक्ति और आतंकवाद के मुद्दे को आगे रखकर चुनाव प्रचार करेगी। गुजरात एटीएस द्वारा दो संदिग्धों की गिफ्तारी के बाद बीजेपी नेताओं ने अपने बयानों से इरादे ज़ाहिर कर दिए हैं।