हाथ में आई सत्ता खिसकने के बाद कर्नाटक में पार्टी को एकजुट रखना बीजेपी के लिए चुनौती
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नई दिल्ली। कर्नाटक में पिछले तीन दिन में जो कुछ हुआ उससे न सिर्फ बीजेपी की फजीहत हुई बल्कि सत्ता हासिल करने के लिए उसकी ईमानदारी पर भी सवाल उठे हैं। जिस रणनीति से बीजेपी सत्ता हासिल करना चाह रही थी वह रणनीति फेल होने के बाद अब पार्टी को राज्य में एकजुट रखना बड़ी चुनौती है।
सूत्रों की माने तो कई बीजेपी विधायक भी पार्टी के उस तरीके से खुश नही थे जिसके ज़रिये वह कर्नाटक में सत्ता तक पहुंचना चाहती थी। कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता तो नही मिली बल्कि उसकी बदनामी हुई और उस पर खरीद फरोख्त के प्रयासों के आरोप भी लगे।
अब चूँकि कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस सरकार बनना तय हो चूका है, इसलिए सत्ता का ख्वाब देख रहे उन बीजेपी विधायको को निराशा अवश्य हुई होगी जो बीजेपी की सरकार बनने पर मंत्रिपद मिलने की आस लगाये बैठे थे।
कर्नाटक में बीजेपी अवश्य ही एक बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर सामने आई थी लेकिन यह भी सच्चाई है कि उसके पास बहुमत के लिए पर्याप्त विधायक नही थे। इसके बावजूद बीएस येदुरप्पा द्वारा आनन फानन में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना और बहुमत के लिए दांव पेंच चलने से पार्टी के कई विधायक आहत अवश्य हुए होंगे।
कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता नही मिली लेकिन उस पर दाग ज़रुर लग गए हैं। बीजेपी पर लगे ताजा दागो से पार्टी के उन दावो की हवा निकल गयी है जिनमे वह सिद्धांतो और उसूलो की दुहाई दिया करती थी। जानकारों की माने तो पार्टी अपने दाग धोने के लिए कर्नाटक के राज्यपाल को बदल सकती है।
वहीँ दूसरी तरफ कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस बात की कोई गारंटी नही है कि सभी बीजेपी विधायक पार्टी के साथ पांच वर्षो तक बने रहें। राजनीति में कुछ भी सम्भव है, इसलिए जिस रणनीति से बीजेपी कांग्रेस और जेडीएस के एमएलए तोड़कर अपने साथ मिलाना चाहती थी उसी रणनीति से कांग्रेस और जेडीएस भी बीजेपी में तोड़फोड़ कर सकती है।
फिलहाल देखना है कि सोमवार को कुमार स्वामी के शपथ लेने और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद कितने दिनों तक बीजेपी अपने विधायको को संजोकर रख पाती है।