सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के मायने: 2004 में तय की थी वाजपेयी सरकार की विदाई
नई दिल्ली(राजाज़ैद)। कांग्रेस कार्यसमिति ने एक बार पार्टी की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपी है। सोनिया गांधी को कल संपन्न हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया था।
जानकारों की माने तो कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों ने सोनिया गांधी पर यूँ ही भरोसा नहीं जताया। सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंपने के कई मायने हैं।
सोनिया गांधी 2004 और 2009 में विपक्षी दलों को एकजुट करने में अपनी अहम भूमिका निभा चुकी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी के अंदर और पार्टी के बाहर सोनिया गांधी की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहेगी।
सोनिया गांधी न सिर्फ विपक्ष को एक बार फिर एकजुट करके खड़ा कर सकती हैं बल्कि गति खो चुकी कांग्रेस को भी पुरानी पटरी पर ला सकती हैं। सोनिया गांधी के अंदर गैर बीजेपी दलों के नेताओं को कांग्रेस से जोड़े रखने की सलाहियत है। वे पहले ऐसा साबित कर चुकी हैं।
वे 2004 में डा मनमोहन सिंह सरकार के लिए 16 दलों का गठबंधन चला चुकी हैं। उन्होंने यूपीए में सेंधमारी करने की बीजेपी की कोशिशों को ध्वस्त करते हुए दस वर्षो तक गैर बीजेपी दलों को एकजुट रखा।
सोनिया गांधी गांधी कांग्रेस के 132 वर्षो के इतिहास में सर्वाधिक लंबे समय तक रहने वाली अध्यक्ष हैं और वे 19 साल तक कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं। सीताराम केसरी के बाद 14 मार्च 1998 को उन्होंने अध्यक्ष पद संभाला और 16 दिसंबर 2017 तक इस पद पर रहीं। 17 दिसंबर 2017 को राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने। राहुल ने 3 जुलाई, 2019 को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था।
सोनिया गांधी अक्टूबर 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और करीब तीन लाख वोटों की विशाल बढ़त से विजयी हुईं। वे 1999 में 13वीं लोकसभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गईं।
2004 के आम चुनाव में यूपीए को अनपेक्षित 200 से ज़्यादा सीटें मिली। वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। 16 मई 2004 को सोनिया गांधी 16 दलों वाले गंठबंधन (यूपीए) की नेता चुनी गईं।
2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एक बार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया गांधी पुनः यूपीए की अध्यक्ष चुनी गईं।
सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाये जाने के बाद अब माना जा रहा है कि उनका पहला कदम पार्टी के अंदर अनुशासन की स्थापना करना और पार्टी नेताओ द्वारा सार्वजानिक तौर पर दिए जा रहे अनावश्यक बयानों पर रोक लगाना होगा।
इतना ही नहीं माना जा रहा है कि सोनिया गांधी संगठन में बड़ा बदलाव करेंगी। वे युवा और अनुभव को साथ लेकर आगे बढ़ेंगी और फिलहाल उनका पूरा फोकस महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा पर रहेगा, जहाँ जल्द ही विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।
राजनैतिक विश्लेषकों की माने तो सोनिया गांधी की प्राथमिकता महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में प्रकाश आंबेडकर की रिपब्लिकन पार्टी को शामिल करने की रहेगी। जिससे लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में सेकुलर वोटों का विभाजन न हो सके।
फिलहाल देखना है कि पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुने जाने के बाद सोनिया गांधी पहला अहम कदम क्या उठाती हैं। जहाँ तक पार्टी का सवाल है तो गांधी परिवार के सदस्य का फिर से पार्टी अध्यक्ष बनना सभी के लिए सुखद माना जा रहा है।