सुप्रीमकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब भारत में समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे
नई दिल्ली। आईपीसी की धारा 377 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अब भारत में आपसी सहमति से समलैंगिक संबंधो को अपराधों की श्रेणी में नहीं माना जायेगा।
17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने 4 दिन की सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिका में आईपीसी की धारा 377 की वैधता को चुनौती दी गयी थी। याचिका में सहमति से बने समलैंगिक संबंधो को जायज करार देने की भी मांग की गयी थी।
बता दें कि दुनिया के कई देशो में समलेंगिकता अपराध नहीं हैं। इनमे ऑस्ट्रेलिया, माल्टा, जर्मनी, फिनलैंड, कोलंबिया, आयरलैंड, अमेरिका, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, लक्जमबर्ग, इंग्लैंड और वेल्स, ब्राजील, फ्रांस, न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, आइसलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड जैसे 26 देशों ने समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है और यहां पर समलैंगिक यौन संबंध मान्य हैं।
एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) समुदाय की एक अर्से से मांग थी कि उन्हें उनका हक दिया जाए और धारा 377 को अवैध ठहराया जाए।
क्या धारा 377:
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है तो उम्रकैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर-जमानती भी है।