सपा- बसपा गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस को लेकर नया गठबंधन बनने की हलचलें
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में बना सपा-बसपा और रालोद गठबंधन लोकसभा चुनाव परिणाम आने के कुछ दिनों बाद ही टूटने से गठबंधन को लेकर भविष्य की राजनीति पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
सपा की मर्ज़ी के बावजूद बसपा सुप्रीमो मायावती की ज़िद्द के चलते इस गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया गया था लेकिन अब सपा-बसपा गठबंधन टूटने के बाद उत्तर प्रदेश में फिर से नया गठबंधन बनाये जाने के लिए कोशिशें शुरू हो गयीं हैं।
लोकसंभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में बने सपा-बसपा और रालोद गठबंधन से सिर्फ बसपा को फायदा हुआ। वह शून्य से दस सीटों तक पहुँच गयी वहीँ सपा और रालोद को कोई फायदा नहीं हुआ। गठबंधन में रालोद को मिली तीनो सीटों पर उसकी हार हुई। वहीँ समाजवादी पार्टी ने कन्नौज और बदायूं की अहम सीटें गंवा दीं।
चुनाव परिणाम आने के बाद बसपा द्वारा आयोजित समीक्षा बैठक में बसपा प्रमुख मायावती ने उपचुनाव बिना किसी गठबंधन के लड़ने की घोषणा की तो मजबूरन समाजवादी पार्टी और रालोद को भी एकला चलो का एलान करना पड़ा।
समाजवादी पार्टी सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव बाद बसपा प्रमुख मायावती द्वारा चले गए दांव से सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो अखिलेश चाहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को परास्त करने को ध्यान में रखकर प्रदेश में एक मजबूत गठबंधन की आवश्यकता है।
सूत्रों ने कहा कि नए गठबंधन में बसपा शामिल नहीं होगी लेकिन इस गठबंधन में कांग्रेस, रालोद, पीस पार्टी के अलावा अपना दल, महानदल, सुहेलदेव समाज पार्टी, निषाद पार्टी जैसे छोटे दलों को शमिल किये जाने के लिए बातचीत शुरू हो चुकी है।
वहीँ कांग्रेस सूत्रों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन था। यह गठबंधन सफल नहीं रहा, जिसकी अहम वजह तत्कालीन अखिलेश सरकार के खिलाफ एंटी इन्कमवेंसी और मुलायम परिवार की आंतरिक कलह रही।
कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि फिलहाल क्षेत्रीय दलों से बातचीत शुरू नहीं की गयी है लेकिन कांग्रेस, सपा और रालोद के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि अधिकतर नेता उत्तर प्रदेश में भीम आर्मी को साथ लेने के पक्षधर हैं। भीम आर्मी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाको में अच्छा प्रभाव है। ऐसे में भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर को बसपा के विकल्प के तौर पर पेश किया जा सकता है।
वहीँ सपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से मुलाक़ात कर शिवपाल की प्रोग्रेसिव समाजवादी पार्टी को सपा में विलय कराये जाने के लिए अपनी बात रखी है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि मुमकिन है कि इस महीने के अंत तक चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच रिश्ते नरम हो जाएँ।
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने भी हाल ही में ऐसे संकेत दिए थे जिनसे मालूम होता है कि वे शिवपाल को पुनः सपा में वापस लाने के पक्षधर हैं। लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या शिवपाल अपनी पार्टी का सपा में विलय करेंगे और क्या शिवपाल के सपा में वापस आने के बाद फिर पार्टी के अंदर कोई नई कलह तो पैदा नहीं हो जाएगी?