संसद में बोले वरुण गाँधी: 18000 किसान कर चुके हैं ख़ुदकुशी, हमारा ध्यान कहाँ है ?
नई दिल्ली। भाजपा सांसद वरुण गाँधी ने संसद में बिना चर्चा के ही बिल पारित किए जाने के मामले पर भी चिंता जताई है। उन्होंने वेतन बढोत्तरी की मांग करने वाले सांसदों को किसान के दुर्दशा की याद दिलाई।
वरुण गाँधी ने कहा, ‘‘वेतन के संबंध में मामलों को बार-बार उठाया जाता है, यह मुझे सदन की नैतिक परिधि के बारे में चिंतित करता है। पिछले एक साल में करीब 18,000 किसानों ने आत्महत्या की है। हमारा ध्यान कहां हैं?’’
लोकसभा में शून्य काल के दौरान सांसदों के वेतन संबंधी मामला उठाते हुए गांधी ने किसानों की दुर्दशा का भी उललेख किया। उन्होंने कहा कि कुछ सप्ताह पूर्व तमिलनाडु के एक किसान ने अपने राज्य के किसानो की पीड़ा के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए राष्ट्रिय राजधानी में खुद की जान लेने का प्रयास किया।
उन्होंने कहा कि जैसा कि हम जानते हैं कि अपनी बात मजबूती से रखने के लिए पिछले महीने इसी समूह के सदस्यों ने खुद का मूत्र पिया एवं उनके साथी किसानो जिन्होंने आत्महत्या की थी उनकी खोपड़ियो का प्रदर्शन भी किया। बावजूद उसके तमिलनाडू की विधानसभा ने 19 जुलाई को बेरहमी से असंवेदनशील अधिनियम के द्वारा अपने विधायको की तनख्वाह दोगुनी कर ली।
नेहरू और गाँधी का ज़िक्र करते हुए वरुण गाँधी ने कहा कि महात्मा गांधी ने एक बार लिखा था कि, ‘‘मेरी राय में सांसदों और विधायकों द्वारा लिए जा रहे भत्ते उनके द्वारा राष्ट्र के लिए दी गयी सेवाओ के अनुपात में होना चाहिए।’’
इसके अलावा नेहरू कैबिनेट के फैसले का उल्लेख करते हुए वरूण ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरु के कैबिनेट की प्रथम बैठक में कैबिनेट के समस्त सदस्यों ने तात्कालिक समय में नागरिको की आर्थिक पीड़ा को देखते हुए 6 महीने तक तनख्वाह का लाभ न लेने का सामूहिक निर्णय लिया था।
इसके अलावा ओडिशा विधानसभा के सदस्य विश्वनाथ दास ने अपने लिए निर्धारित 45 रूपये प्रतिदिन के स्थान पर यह कहते हुए सिर्फ 25 रूपये प्रतिदिन लिए कि, उनको इससे ज्यादा की आवश्यकता नहीं है। वीआई मुनिस्वामी पिल्लई ने 1949 में किसानो की पीड़ा को मान्यता देने के लिए 5 रूपये प्रतिदिन की कटौती का प्रस्ताव विधानसभा में रखा था। जिसे तब की विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव को पारित कर दिया था।
वरुण गाँधी ने सांसदों के बेतनमान में वृद्धि करने के लिए ब्रिटेन मॉडल की वकालत करते हुए कहा कि ‘‘पिछले एक दशक में ब्रिटेन के 13 प्रतिशत की तुलना में हमने अपने वेतन 400 प्रतिशत बढ़ाये हैं ,क्या हमने सही में इतनी भारी उपलब्धि अर्जित की है?, जबकि हम अपने पिछले दो दशक के प्रदर्शन पर नजर डालें तो मात्र 50 प्रतिशत विधेयक संसदीय समितियों से जांच के बाद पारित किए गए हैं। जब विधेयक बिना किसी गंभीर विचार-विमर्श के पारित हो जाते हैं, तो यह संसद के होने के उद्देश्य को पराजित करता है। विधेयक को पारित करने की हड़बड़ी राजनीति के लिए प्राथमिकता दिखाती है, नीति के लिए नहीं। 41 प्रतिशत बिल सदन में चर्चा के बिना ही पारित किये गये।’’