संपादकीय: भूख से बेटी चिल्लाती रही भात भात, हम करते रहे ताजमहल और मुगलो की बात

संपादकीय: भूख से बेटी चिल्लाती रही भात भात, हम करते रहे ताजमहल और मुगलो की बात

ब्यूरो। भारत के इतिहास में बड़ी मार्मिक और शर्मनाक घटना है कि आधार कार्ड राशन कार्ड से लिंक न होने पर एक महिला को राशन डीलर ने राशन देने से मना कर दिया जिसके चलते उसके घर में एक सप्ताह तक खाना नहीं बन सका और इस दौरान उसकी 11 साल की मासूम बच्ची की ‘भात भात’ कहते कहते मौत हो गयी।

इसे सिस्टम की खामी कहें या सरकार की लापरवाही, जो भी हो बेहद शर्मनाक है खासकर उन लोगों के लिए जो धर्म और जाति के मुद्दे उठाकर देश की मूल समस्याओं से ध्यान बांटने की कोशिश करते हैं।

सरकार कहती है कि पचास हज़ार रुपये तक का सोना खरीदने के लिए पैन कार्ड आवश्यक नहीं है लेकिन सौ, दो सौ रुपये का राशन खरीदने के लिए आधार कार्ड ज़रूरी क्यों है ? क्या आधार कार्ड इतना ज़रूरी होगया कि सरकार और सिस्टम बच्चो के खाली पेट से निकल रही भूख भूख की आवाज़ न सुन सके।

पिछले कुछ महीनो के दौरान गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में सैंकड़ो बच्चो की मौत हो चुकी है। इस देश के नेता इस पर बात क्यों नहीं करते ? इस देश के नेता धार्मिक कारणों से करोडो रुपये खर्च करने को तैयार है तो बच्चो की मौत का सिलसिला रोकने के लिए उनके पास पैसे क्यों नहीं हैं।

यदि गोरखपुर में अच्छे डॉक्टर नहीं हैं, अच्छा इलाज नहीं हो रहा तो सरकार इसे स्वीकार क्यों नहीं करती ? जब सरकार अयोध्या में सौ फीट ऊँची मूर्ति की स्थापना के लिए करोडो रुपये खर्च करने को तैयार है तो बच्चो के इलाज के लिए विदेशो से डॉक्टर क्यों नहीं बुला सकती ? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो राजनीति और सत्ता में बैठे लोगों को पसंद नहीं आएंगे लेकिन आज नहीं तो कल उन्हें इन सवालो का जबाव तो देना ही होगा।

झारखंड के सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड की पतिअंबा पंचायत के गांव कारीमाटी मे भूख से बच्ची की मौत हम सबके लिए और खासकर विकास और नई इंडिया बनाने के दावे करने वाली सरकारों के आइना है। जो उन्हें सच्चाई से रूबरू कराता है। यह अलग बात है कि सरकार और सिस्टम में बैठे लोग इस घटना से कितना सबक लेंगे लेकिन अगर किसी के अंदर ज़रा भी इंसानियत होगी तो वह एक बार उस मार्मिक दृश्य को लेकर अवश्य सोचेगा, जब उस बच्ची ने भात भात कहते कहते अपनी जान दे दी।

एक बड़ा सवाल यह भी है कि हम डिजिटल इंडिया की बात करते हैं, हम बुलेट ट्रेन की बात करते हैं लेकिन हम पेट भर खाना देने की बात नहीं करते, ऐसा क्यों ? जब झारखंड में कुपोषण की बात उठती है तो राज्य के मुख्यमंत्री इसे पिछली सरकारों पर डाल कर अपना पल्ला झाड़ देते हैं।

उनसे यह अवश्य पूछना चाहिए कि अगर पिछली सरकारों के कारण कुपोषण की समस्या हैं तो अब आपकी सरकार क्या कर रही है ? राज्य में गरीब बच्चो के लिए भोजन का सहारा बनी स्कूलों की मिड डे मील भी तो पिछली सरकारों की देन है। आप उसका ज़िक्र क्यों नहीं करते ?

मैं इस मामले में ज़्यादा गहराई में नहीं जाना चाहता लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि जिस विकास की बात हो रही है यदि वह इंसान को पेट भर खाना न दे सके तो ऐसे विकास के कोई मायने नहीं हैं। उम्मीद करता हूँ कि सरकारें इस घटना से सबक ज़रूर लेंगी।

(राजाज़ैद)

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