ये है मध्य प्रदेश की चुनावी तस्वीर, कई मंत्रियों और कद्दावर नेताओं की सीटें खतरे में
भोपाल ब्यूरो (राजाज़ैद)। मध्य प्रदेश में चुनावी तस्वीर धीमे धीमे साफ़ हो रही है। हालाँकि अभी तक सिर्फ बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने ही कुछ उम्मीदवारों के नाम घोषित किये हैं, कांग्रेस और बीजेपी सहित अन्य दलों के उम्मीदवारों ने नामो की घोषणा बाकी है।
ज़मीनी हकीकत सत्तारूढ़ बीजेपी के दावों से कहीं अलग दिखाई दे रही है। राज्य में बीजेपी के कई मंत्रियों और कद्दावर नेताओं की सीटें खतरे में होने के बावजूद बीजेपी बड़े दावे कर रही है। एंटी इनकंबेंसी के चलते इस बार चुनाव में बड़े उल्ट पलट होने के संकेत मिल रहे हैं।
मध्य प्रदेश में मतदाताओं की बीजेपी से बढ़ती नाराज़गी के बीच राज्य के सीएम फिर से सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं। हालाँकि अभी चुनाव में एक महीने से अधिक का समय बाकी है लेकिन इस वक़्त की ज़मीनी हकीकत सत्तारूढ़ बीजेपी के दावों से मेल नहीं खा रही।
इस बार हालात 2013 के चुनावो से बिल्कुल पलट हैं। मध्य प्रदेश के कई इलाको में बीजेपी के बढ़ते विरोध के बीच कांग्रेस अपनी जगह बना रही है। वहीँ संगठित क्षेत्र के मतदाता भी इस बार बीजेपी से नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। पूर्व सैनिको, पूर्व सरकारी कर्मचारियों और व्यावसायिक यूनियनों ने बीजेपी से पहले ही दूरी बना ली है। यही कारण है कि संगठित क्षेत्र के मतदाताओं के लिए बीजेपी की कोई रैली आयोजित नहीं हुई है।
मध्य प्रदेश में पूर्व सैनिको, पूर्व सरकारी कर्मचारियों और व्यावसायिक संगठनों के करीब 16 लाख मतदाता हैं। जो चुनाव को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं। वहीँ किसान यूनियनें पहले ही बीजेपी का विरोध कर रही हैं। गौरतलब है कि मंदसौर में किसानो पर पुलिस फायरिंग के बाद राज्य की दो बड़ी किसान यूनियनें बीजेपी का विरोध करती आ रही हैं।
पांच प्रतिशत वोटो पर टिकी है चुनावी जंग:
2013 के विधानसभा चुनाव में 72.66 फीसदी मतदान हुआ था। जिसमे कांग्रेस को 36.18%, बीजेपी को 44.87%, बहुजन समाज पार्टी को 6.29% वोट मिले थे। वहीँ करीब दो दर्जन सीटें ऐसी थीं जिन पर हारजीत का फैसला 5000 वोटों से भी कम का रहा था।
2013 में बीजेपी के लिए एंटी इनकंबेंसी चुनौती नहीं थी। राज्य में कांग्रेस संगठन भी कमजोर था। इसके अलावा संगठन में बड़ी गुटबंदी भी एक कारण थी जिसका बीजेपी को लाभ मिला था। इस बार बीजेपी के समक्ष कई नई चुनौतियाँ हैं जिनका पार्टी के पास फ़िलहाल कोई तोड़ दिखाई नहीं दे रहा।
चुनावी जानकारों की माने तो इस बार चुनाव में खींचतान 5% वोटों के लिए होगी। यदि चुनाव में 3 से 5 फीसदी वोट बीजेपी के खिलाफ स्विंग हुआ तो शिवराज सरकार की विदाई तय है।
ज़मीनी हकीकत देखें तो इस बार बीजेपी के परम्परागत गढ़ कहे वाले विधानसभा क्षेत्रो में भी विरोध के सुर हैं। जिनके चलते कई कद्दावर नेताओं की सीटें खतरे में पड़ती दिखाई दे रही हैं।
क्यों नहीं हुआ गठबंधन:
बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन न होने को लेकर मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा कि हम अभी भी गठबंधन पर काम कर रहे हैं। जहां तक बीएसपी का सवाल है उसकी कहानी थोड़ी अलग है। चूंकि उनका वोट शेयर 6.3 फीसदी है इसलिए वह प्रदेश में 50 सीटों की मांग कर रहे हैं। अब दो तीन हजार वोट के लिए इतना बड़ी सीट पर समझौता हमने नहीं किया है।