यूपी नहीं अब ये तीन राज्य तय करेंगे 2019 की तस्वीर

यूपी नहीं अब ये तीन राज्य तय करेंगे 2019 की तस्वीर

नई दिल्ली (राजा ज़ैद)। अब तक कहा जाता था कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। यानि कि केंद्र की सत्ता हासिल करने के लिए उत्तर प्रदेश में सत्ता होना आवश्यक है। लेकिन इस बार परिस्थतियाँ बदल रही हैं।

भले ही यूपी में लोकसभा की सर्वाधिक 80 सीटें हों लेकिन अहम बात यह है कि 2019 के आम चुनावो से पहले तीन अहम राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं।

इन तीन राज्यों को जो पार्टी फतह करेगी ज़ाहिर है उसका मनोबल भी बढेगा और जनाधार भी। ऐसे में यह माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावो के परिणाम 2019 की तस्वीर तय करेंगे।

यूँ तो तीनो राज्यों में इस समय बीजेपी की सरकारें हैं लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या बीजेपी तीनो राज्यों में फिर से वापसी कर पाएगी ? तीनो राज्यों की ग्राउंड रिपोर्ट बीजेपी के पक्ष में नही आ रही। तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावो को लेकर बीजेपी भले ही बड़े बड़े दावे कर रही हो लेकिन उसके दावे धरातल पर फिर नही बैठ रहे।

राजस्थान में हाल ही में बीजेपी की सत्ता रहते हुए दो लोकसभा और एक विधानसभा का उपचुनाव पार्टी हार चुकी है। ये इस बात का बड़ा प्रमाण है कि राजस्थान में जनता सरकार के कामकाज से खुश नही है। इतना ही नही चुनावो के मद्धेनजर गौरव यात्रा निकाल रही बीजेपी को कई इलाको में भारी विरोध का सामना करना पड़ा है।

वहीँ राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा k=विरोधियों का एकजुट होना और पार्टी की आंतरिक कलह से इस बार पार्टी का मनोबल पिछले चुनाव की तुलना में कमज़ोर हुआ है।

ठीक ऐसा ही हाल मध्य प्रदेश का भी है। यहाँ पिछले दिनों बीजेपी द्वारा शुरू की गयी विकास यात्रा को कई गाँवों में ग्रामीणों ने घुसने नही दिया। इतना ही नहीं खांडवा से सांसद नंदकुमार चौहान जब विकास यात्रा का काफिला लेकर अपने ही क्षेत्र के बुरहानपुर इलाके के ग्राम पातोडा में घुसे तो उन्हें भी विरोध का सामना करना पड़ा।

वहीँ एक और मामले में विकास यात्रा लेकर पहुंचे चंदला से बीजेपी के विधायक आरडी प्रजापति को देखर गुस्साए ग्रामीणों ने हवा में जूते चप्पल उछाले और विकास यात्रा को गाँव में नहीं घुसने दिया।

अब ताजा मामले में जन आशीर्वाद यात्रा लेकर निकले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सिधी में काले झन्डे दिखाए गए और चुरहट में उनके काफिले पर पत्थर भी फेंका गया।

मध्य प्रदेश में पिछले पन्द्रह वर्षो से बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह मुख्यमंत्री हैं। इसलिए इस बार चुनाव में एंटी इनकम्बेंसी अभी से दिखाई दे रही है। बीजेपी और खुद सीएम शिवराज सिंह भले ही कोई दावे करें लेकिन सच्चाई यही है कि इस बार राज्य में सर्कार विरोधी हवा चलना शुरू हो गयी है।

अगर छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहाँ भी पिछले पंद्रह वर्षो से बीजेपी की सरकार है और रमन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री हैं। इस बार होने जा रहे चुनावो में कई ऐसे नए मुद्दे पैदा हो गए हैं जो बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं।

वहीँ इस बार राज्य में कांग्रेस अपनी बदली हुई रणनीति के साथ मैदान में हैं। कांग्रेस ने पीएल पुनिया को राज्य का प्रभारी न्युक्त कर दलित मतदाताओं का ध्यान अवश्य खींचा है। वहीँ पार्टी ने आदिवासियों को अपने साथ फिर से जोड़ने की कवायद के तहत आदिवासी इलाको में खासा पसीना बहाया है।

एंटीइंकमबैंसी के प्रकोप से छत्तीसगढ़ भी अछुता नही है। हालाँकि पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजेपयी के निधन के बाद सीएम रमन सिंह ने एक बार फिर बीजेपी की पुरानी तस्वीर पेश करने की कोशिश अवश्य की है लेकिन ये कोशिश बेरोज़गारी और राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के आगे फीकी पड़ती नजर आ रही है।

आसपास के राज्यों में भी दिखेगा असर:

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की मिलाकर 65 सीटें हैं। इनमे मध्य प्रदेश में 29, छत्तीसगढ़ में 11, और राजस्थान में 25 लोकसभा सीटें हैं। लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली विजय का सन्देश आसपास के राज्यों तक जाता है।

जिन तीन राज्यों में चुनाव होने हैं उनकी सीमाएं परस्पर एक दूसरे को छूने के अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, झारखण्ड, ओडिशा, तेलंगाना आदि राज्यों के कई जिलों की सीमाओं से सटे हुए हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इन तीन राज्यों में जो पार्टी फतह करेगी उसका पड़ौसी राज्यों में भी असर दिखेगा।

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TeamDigital