यदि राम मंदिर के लिए अध्यादेश लायी सरकार तो उसे भी सुप्रीमकोर्ट में दी जाएगी चुनौती
नई दिल्ली। राम मंदिर निर्माण के लिए यदि केंद्र सरकार अध्यादेश लाती तो बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी सुप्रीमकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी। सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश पर जफरयाब जिलानी ने कहा है कि यह सामान्य आदेश है।
इससे पहले आज विवादित भूमि के मामले में सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई हुई थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में जस्टिस एस के कौल और के एम जोसेफ वाली बेंच ने कहा, “जनवरी में उपयुक्त बेंच के समक्ष अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई की तारीख तय होगी।”
वहीँ दूसरी तरफ विश्व हिन्दू परिषद तथा बीजेपी के कुछ नेताओं की तरफ से आये बयानों में कहा गया है कि राम मंदिर निर्माण के लिए कोर्ट के फैसले का इन्तजार नहीं किया जा सकता। इसलिए सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लेकर कानून बनाये।
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा राम मंदिर निर्माण के लिए शीत कालीन सत्र में अध्यादेश लाने की संभावनाओं पर एक चैनल द्वारा पूछे गए सवाल के जबाव में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा कि सरकार अगर अध्यादेश लाएगी तो हम उसे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
उन्होंने कहा कि सरकार जानती है कि यदि वह अध्यादेश लाएगी तो वह भी कोर्ट में स्टे हो जायेगा इसलिए सरकार राम मंदिर मामले में अध्यादेश लाने की गलती नहीं करेगी।
इससे पहले आज सुप्रीमकोर्ट द्वारा अयोध्या की विवादित भूमि मामले की सुनवाई को जनवरी तक बढ़ाने पर कई नेताओ ने प्रतिक्रियाएं दी हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि अब हिन्दुओं के सब्र का बाँध टूट रहा है। सरकार को इस मामले में तत्परता दिखानी चाहिए।
आल इंडिया मजलिस ऐ इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यदि 56 इंच वालो में हिम्मत है तो वे अध्यादेश लाकर दिखाएँ।
वहीँ इस मामले पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला करे हमें मंजूर है लेकिन अगर इस मामले में कानून बनाकर कुछ किया गया तो ये गलत होगा। फैसला चाहे हमारे पक्ष में हो या विपक्ष में हो सबको स्वीकार होगा।
वहीँ कानून के जानकारों की माने तो सरकार राम मंदिर मुद्दे पर अध्यादेश लाकर अपनी किरकिरी कराना नहीं चाहेगी। चूँकि मामला देश की सर्वोच्च अदालत में है और राम मंदिर का मामला ऐसा नहीं है जिसके लिए इमरजेंसी जैसी स्थति हो। यदि सरकार अध्यादेश लाएगी तो उसे सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है और यदि सुप्रीमकोर्ट ने इसे सुनवाई के लिए मंजूरी दी तो सुनवाई पूरी होने तक सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश किसी काम का नहीं रहेगा।