मोदी सरकार को झटका: विधि आयोग ने कहा ‘कॉमन सिविल कोड’ की ज़रूरत नहीं
नई दिल्ली। देश में सामान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) लागू करने की मोदी सरकार की कोशिशों को झटका लगा है। विधि आयोग (लॉ कमीशन) ने सरकार से कहा है कि देश में कॉमन सिविल कोड की आवश्यकता नहीं है।
विधि आयोग द्वारा सरकार को भेजे गए परामर्श पत्र में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता की ‘न तो जरूरत है और न ही वह वांछित है’। आयोग ने विवाह, तलाक, गुजाराभत्ता से संबंधित कानूनों और महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव दिए।
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने चुनावी घोषणा पत्र में देश में सामान नागरिक संहिता(कॉमन सिविल कोड) लागू करने का वादा किया था। जुलाई, 2016 में कानून मंत्रालय ने विधि आयोग को यूसीसी की व्यावहारिकता और गुंजाइश पर अध्ययन करने को कहा था।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग की ओर से कानून मंत्रालय को दिए परामर्श पत्र में कहा गया है कि यूसीसी की अभी जरूरत नहीं है। संविधान सभा में हुई बहस से पता चला कि यूसीसी को लेकर सभा में भी सर्वसम्मति नहीं थी।
परामर्श पत्र में कहा गया, ‘समान नागरिक संहिता का मुद्दा व्यापक है और उसके संभावित नतीजे अभी भारत में परखे नहीं गए हैं। इससे पहले विधि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में मामले लंबित होने का हवाला देते हुए विधि आयोग ने बहु-विवाह, निकाह-हलाला जैसे मामलों पर भी विचार करने से इनकार कर दिया था।
क्या है सामान नागरिक संहिता(कॉमन सिविल कोड):
समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है। वहीं, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ की मूल भावना है। यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है।
समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहां भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है।