मीट का विरोध करने वाली बीजेपी के राज में मीट एक्सपोर्ट 17 हज़ार टन बढ़ा
नई दिल्ली। जहाँ एक तरफ भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस नेता मीट पर पाबंदी की बातें करते हैं वहीँ दूसरी तरफ मोदी सरकार ने पिछली सरकारों को पीछे छोड़ने हुए मीट एक्सपोर्ट के मामले में बाजी मार ली है। मांस के एक्सपोर्ट को लेकर सामने आयी जानकारी से बीजेपी नेताओं के दावों की पोल खुल रही है।
गौरतलब है कि बीजेपी नेता बीफ पर पाबन्दी की वकालत करते रहे हैं। इतना ही नहीं बीजेपी के लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखने वाले विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल जैसे हिंदूवादी संगठन भी मांसाहार के खिलाफ हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मीट एक्सपोर्ट का मुद्दा उठाकर मनमोहन सिंह सरकार पर बड़ा हमला बोला था।
लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान मोदी ने कहा था कि “पूरे विश्व में बीफ एक्सपोर्ट में हिंदुस्तान नंबर वन है। किन चीजों के लिए गर्व किया जा रहा है भाइयो और बहनों आपका कलेजा रो रहा या नहीं, मुझे मालूम नहीं, मेरा कलेजा चीख-चीख कर पुकार रहा है. और आप कैसे चुप हैं, कैसे सह रहे हैं, मैं समझ नहीं पा रहा हूं।”
मोदी सरकार में मीट के एक्सपोर्ट में बेतहाशा वृद्धि दर्शाती है कि मांस को लेकर बीजेपी नेताओं के तमाम दावे झूठे थे। मांस के एक्सपोर्ट में वृद्धि का सीधा सीधा मतलब यही है कि जानवरो का कटान पहले से अधिक हुआ है।
मांस के एक्सपोर्ट में हुई बढ़ोत्तरी का खुलासा उस समय हुआ जब सरकार ने संसद को बताया है कि वर्ष 2016-17 में मांस निर्यात 17 हज़ार टन बढ़ गया है। सरकार ने बताया कि भारत का मांस निर्यात वर्ष 2016-17 में बढ़कर 13.53 लाख टन हो गया जो पूर्व वित्त वर्ष की समान अवधि में 13.36 लाख टन था। केंद्र सरकार ने गुरुवार को संसद में यह जानकारी दी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि मांस और चमड़े के उत्पादन को रोकने के संदर्भ में उनके मंत्रालय में कोई शिकायत नहीं प्राप्त हुई है। हालांकि उन्होंने कहा कि आंकड़ों के अनुसार भैंस के मांस का निर्यात घटा है। अप्रैल मई 2016-17 के दौरान भैंस मांस का निर्यात 55.4 करोड़ रुपये का हुआ था जबकि चालू वर्ष की समान अवधि में यह निर्यात 53 करोड़ रुपये का हुआ।
उन्होंने कहा कि चर्म उत्पादों और जूते चप्पलों का निर्यात वर्ष 2015-16 और वर्ष 2016-17 के दौरान विभिन्न कारणों से घटा है जिसमें यूरोपीय बाजार में मंदी, पश्चिम एशिया के देशों की अक्षमता जैसे कुछ बाय कारण शामिल हैं।