मनमोहन सरकार में मोदी राज से क्यों अच्छा था अर्थव्यवस्था का हाल
नई दिल्ली । देश के बड़े अर्थशास्त्रियों का मत है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था एकदम दरुस्त रही । अंतर्राष्ट्रीय स्तर मंदी होने के बावजूद मनमोहन सिंह ने देश की अर्थव्यवस्था पर किसी तरह की आंच नहीं आने दी । इतना ही नहीं यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान वित्तीय सुधारो के लिए बड़े और कड़े कदम उठाकर मनमोहन सिंह ने देश को आर्थिक मंदी की तरफ जाने से बचा लिया ।
सरकारी व्यय और खपत से भले ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद बंधी हो, लेकिन विकास केा बनाए रखने के लिए इतना काफी नहीं है। औद्योगिक प्रगति, व्यापार और क्रय प्रबंधकों की सूची पर इस महीने जारी हुए आंकड़ों में यह बात साफ हो गई है कि उद्योगों की हालत अभी ठीक नहीं है, आने वाले तिमाहियों में इसे दुरुस्त करना होगा।
मरणासन्न निजी निवेश के लिए, क्षमता का खराब उपयोग और केन्द्र और राज्य के बड़ा निवेश करने की कम होती संभावनाओं का मतलब निवेश चक्र में रिकवरी, जो कि लगातार विकास के लिए जरूरी है, धीमी रहेगी और इसके सामने आने में कम से कम 12-18 महीने लगेंगे। सीमेंट की कुल मांग का तीन-चौथाई ग्रहण करने वाला हाउजिंग सेक्टर मंदी के दौर से गुजर रहा है।
सीमेंट कंपनियों ने 2010-12 के दौरान हर वर्ष 40 मिलियन टन क्षमता बढ़ाई थी, लेकिन अब सिर्फ 10-15 मिलियन टन रह गई है। तब उपयोग 75-80 प्रतिशत था जो अब घटकर 70 प्रतिशत रह गया है। 2011 में स्टील क्षेत्र में 80 मिलियन टन क्षमता बढ़ाई गई थी, ऑपरेटिंग रेट 80-83 प्रतिशत के बीच था।
पिछले चार सालों को मिला लें तो भी सिर्फ 30 मिलियन टन क्षमता ही बढ़ पाई है। वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी भी संकट से गुजर रही है। विदेशी मांग से बढ़ते उत्पादन की 50 प्रतिशत खपत होती थी, जो कि अब नदारद है।
रेटिंग एजेंसी Crisil में व्यापारिक शोध के वरिष्ठ निदेशक प्रसाद कोपड़कर कहते हैं, “2015-16 में कुल पूंजीगत व्यय में 6-7% की वृद्धि हुई है, लेकिन इसका ब्योरा असली कहानी बताता है। निजी क्षेत्र का उद्योग पूंजीगत खर्च पिछले साल नकारात्मक था। यहां तक कि 7% समग्र वृद्धि भ्ाी डरा रही है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे क्षेत्रों में जैसे सड़कों में बढ़ोत्तरी हुई है और कुछ उद्योगों जैसे सोलर पावर, टेलीकाॅम और फर्टिलाइजर्स में निवेश हो रहा है।”
इंडिया इंक ने 2010-12 के दौरान अभूतपूर्व क्षमता जुटाई थी। 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद पूरी दुनिया के साथ मिलकर भारत ने विकास को गति प्रदान करने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन दिया था और कंपनियां अपना व्यापार बढ़ाने के लिए लगातार उधार ले रही थीं।