भारत में 8.4 करोड़ बच्चे नहीं जाते स्कूल, 78 लाख बाल श्रम करने को हैं मजबूर
नई दिल्ली । इक्कीसवी सदी की तरक्की और डिजिटिल इंडिया बनने के सपनो के बीच एक झकझोर देने वाली हकीकत भी है । अभी भी इस देश के 8.4 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से बंचित हैं वहीँ 78 लाख बच्चे बाल मजदूरी करते हैं । इन बाल मजदूरो में 6 वर्ष तक के मासूम भी हैं जो खेलने के उम्र में मजदूरी करते हैं ।
केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में 2011 की जनगणना के आधार पर जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में 8.4 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जाते और 78 लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्हें मजबूरन बाल मजदूरी करना पड़ता है। हालांकि, पढ़ने वाले छात्रों की आबादी की तुलना में काम करने वाले छात्रों की संख्या बहुत कम है।
आंकड़ों के मुताबिक बाल श्रम करने वाले कुछ 78 लाख बच्चों में 57 फीसदी लड़के हैं और बाकी 43 फीसदी लड़कियां हैं। इन आंकड़ों में बाल श्रम में शामिल बच्चों की कुल संख्या में लड़कियों का अनुपात कम होने के पीछे भारत के पुरुष प्रधान समाज को कारण बताया गया है। पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से भारत की कुल कामकाजी आबादी में महिलाओं का हिस्सा 27 फीसदी है। आपको यह जानकर और हैरानी होगी की बाल श्रमिकों में 6 साल के मासूम भी हैं।
बाल श्रम करने वाले कुल बच्चों में से 68 फीसदी कृषि या शिल्पकारी के कामों में लगे हैं, ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां साल के छह महीने या उससे भी कम समय तक काम होता है। इसके अलावा ये बच्चे विभिन्न उद्यमों में अकुशल सहायकों के तौर पर भी कम करते हैं। इनमें से 32 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो साल भर काम करते हैं। काम करते हुए पढ़ाई करने से बच्चों की शिक्षा पर क्या फर्क पड़ता है, इसका अध्ययन अभी नहीं किया गया है लेकिन यह माना जा रहा है कि इससे शिक्षा प्रभावित होती है।
वहीं, दूसरे आंकड़े के मुताबिक भारत में 8.4 करोड़ बच्चे स्कूल ही नहीं जाते हैं। स्कूल न जाने वाले बच्चों में लड़के एवं लड़की का अनुपात बराबर है। आम लोगों में यह धरणा बनीं हुई है कि जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते उसके लिए उनका बाल श्रम में शामिल होना एक बड़ा कारण है।
जनगणना के आंकड़े दर्शाते हैं कि स्कूल न जाने वाले बच्चों में से सिर्फ 19 फीसदी ही ऐसे हैं जो कहीं काम करते हैं। आंकड़ों में शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता को लेकर भी सवालिया निशान खड़ा होता है। बच्चों मिलने वाली शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं है।