भाजपा से ज़्यादा मुलायम को है राम मंदिर की जल्दी !

भाजपा से ज़्यादा मुलायम को है राम मंदिर की जल्दी !

ब्यूरो । 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनावो में मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण की फ़िक्र समाजवादियों के चेहरों पर साफ़ दिख रही है ।  यही कारण है कि प्रदेश में सत्ता के इर्दगिर्द पैदा हो रही ख़बरें बड़ी तेज़ी से निचले स्तर तक पहुँच रही हैं । उत्तर प्रदेश में सत्ता के गलियारों में ऐसी कुछ अफवाहें घूम रहीं हैं जो साफ़ इशारा करती हैं कि विहिप के राम मंदिर निर्माण आंदोलन को सपा मुखिया का अप्रत्यक्ष  समर्थन है ।

यहाँ एक बड़ी सवाल यह भी है कि क्या समाजवादी पार्टी चाहती हैं कि विहिप और भाजपा इन चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण के लिए फिर से कोई आंदोलन  शुरू करे । एक ऐसा आंदोलन जिसे बल पूर्वक रोककर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं का ध्यान खींचा जा सके ? सम्भवतः इसी सवाल के जबाव में समाजवादी पार्टी का भविष्य छिपा हुआ है ।

अगर यह सवाल सही है तो यह पहला अवसर नहीं होगा जब समाजवादी पार्टी मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण के लिए अपना और हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा का फायदा सोचे । अगर राम मंदिर निर्माण को लेकर ठीक चुनाव से पहले भाजपा और विहिप कोई ऐसा आंदोलन छेड़ते हैं जिसे सरकार बलपूर्वक दबाती है तो इससे भाजपा और सपा दौनो को फायदा होगा । हिन्दू सिमपैथी वोट भाजपा की तरफ जाने से कोई नहीं रोक सकेगा मजबूरन मुस्लिम मतदाताओं को सपा का दामन थमने पड़ेगा , जो पहले भी हुआ है ।

देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश की हमेशा से अहम भूमिका रही है। 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव के परिणाम किसके पक्ष में जायेंगे, इसमें सबका अपना-अपना तर्क हो सकता है। लेकिन जिस तरह से वर्तमान एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सरकार और प्रशासनिक वयवस्था को इधर चुस्त-दुरुस्त करने में जुटे हुए हैं उससे ये लगने लगा है कि अखिलेश यादव 2017 के चुनाव को लेकर आसानी से हार मानने को तैयार नहीें हैं।

अखिलेश यादव ने जिस तरीके से अपनी चुनावी चौसर बिछानी शुरू की है उससे तो यही लगता है कि एसपी भी अपनी नियोजित प्लान के तहत अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी फ़तेह करना चाहते हैं। वैसे तो ज़्यादातर राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि एसपी को पछाड़ कर बीएसपी अपना झंडा बुलंद करेगी।

हालांकि राजनीति में कब क्या हो जाये कह पाना मुश्किल है। प्रशासनिक व्यवस्था को अगर छोड़ दें तो अखिलेश सरकार ने इन चार वर्षों में तमाम तरह के विकास कार्य किये हैं। जो धरातल पर दिखाई पढ़ता है।अखिलेश अब अपनी तमाम योजनाओं का बखान बढ़ चढ़कर कर रहे हैं।

दूसरी तरफ लगभग चुनाव से एक साल पहले जिस तरह से नए-नए गठबंधन बनाने की बातें की जा रही हैं,उसका भी फायदा सपा सरकार को मिल सकता है।

इसलिए इस बात की संभावना ज़्यादा है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरे सूबे में कई जगह त्रिकोणीय व चौतरफा मुक़ाबला होगा। बीजेपी भी अपनी मज़बूती में जुट गयी है। मुलायम सिंह की कोशिश होगी कि अगर एसपी फिर से सत्ता में नहीं आ पाती है तो वह पर्दे के पीछे रहकर बीजेपी को लाने की कोशिश करेगी। जो लोग मुलायम के दांव पेच से वाक़िफ़ हैं वो ये बात भली-भाँती जानते हैं। जहाँ तक रही बात कांग्रेस की तो वो तमाम प्रयासों के बावजूद जहां कि तहां ही रहेगी।

यहाँ इस बात का उल्लेख कर देना उचित होगा कि उत्तर प्रदेश में जब-जब बीजेपी कट्टर हिंदुत्ववाद को लेकर बढ़ी है तब-तब समाजवादी पार्टी को फायदा पहुंचा है। इस लिए समाजवादी पार्टी चाहेगी कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी राम मंदिर निर्माण के नाम पर उग्र हिंदुत्ववाद को बढ़ावा दे।

2017 के चुनाव में अभी समय बाकी है । चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में एक बड़ा परिवर्तन भी हो सकता है । यदि अमर सिंह पार्टी में वापस आये तो आज़म खान का क्या रुख रहता है ये तय होना बाकी है । इसलिए इस विषय में ज़्यादा कुछ कहना समय के गर्भ में पल रहे भविष्य का गर्भपात करने जैसा है ।

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TeamDigital