भय या दबाव : अखलाख’ के गांव में बिना कुर्बानी के मनाई गई ईद

दादरी । अखलाख की हत्या के ठीक एक वर्ष बाद इसे भय कहा जाए या सामाजिक दबाव लेकिन हकीकत यही है कि बिसाहड़ा गांव में ईद उल अदहा का आयोजन बिना कुर्बानी के किया गया। पिछले साल 25 सितंबर को ईद पर बछड़े की हत्या करने का आरोप लगाते हुए कुछ लोगों ने अखलाख को पीट पीटकर मौत के घाट उतार दिया था।

हालांकि, इस बार गांव में मुस्लिम परिवारों ने कुर्बानी नहीं दी। कुछ कह रहे हैं कि सद्भाव बढ़ाने की कोशिश है। कुछ का कहना है कि आर्थिक दशा ठीक नहीं है। वहीँ कुछ लोगों का कहना है कि कुर्बानी न करने के लिए मुस्लिमो पर दबाव डाला गया था ।

दादरी के डीएसपी अनुराग सिंह ने बताया कि मंगलवार की सुबह सामान्य रूप से गांव के बाहर उत्तर दिशा में बनी ईदगाह पर मुस्लिम भाई एकत्र हुए। सबने नमाज अदा की है। उसके बाद हिन्दू उनके घर पहुंचे हैं। बैठे और एक-दूसरे को बधाई दी हैं। गांव में हालात सामान्य हैं।

बस हालात पर नजर रखने और ऐहतियात बरतने के लिए फोर्स सोमवार की शाम ही यहां भेज दिया गया था। करीब एक सप्ताह पहले गांव में एक अध्यापक की हत्या हो गई है। इस कारण भी फोर्स को यहां लगाया गया है। हत्या का अभी खुलासा नहीं हो सका है।

कुर्बानी नहीं देने के पीछे सद्भाव और गरीबी
ग्राम प्रधान के पति हरिओम राणा का कहना है कि किसी मुस्लिम परिवार ने कुर्बानी नहीं दी है। हालांकि इसके लिए किसी पर कोई बंदिश नहीं है। हाजी सत्तार का कहना है कि गांव के अखलाख की हत्या के बाद गांव के युवक जेल में बंद हैं। ऐसे में गांव में खुशियां मनाने का कोई मतलब नहीं है। सही मायने में हिन्दू और मुसलमान कोई भी अपना त्यौहार सही ढंग से नहीं मना रहा है।

अनवर सैफी गांव में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन दोनों समुदायों के बीच सद्भाव बनाए रखने के लिहाज से ऐसा किया है। आपसी विश्वास लौटना चाहिए। ज्यादातर परिवार मजदूर हैं। उनकी आर्थिक दशा भी कमजोर है। जिसकी वजह से उन्होंने बकरा या कोई दूसरा जानवर नहीं खरीदा है।

बिसाहड़ा में पुराने दिन फिर लौटकर आएंगे
शौकीन सैफी, नमू सैफी, इकराम, इकबाल और शब्बीर सैफी समेत गांव के सारे मुस्लिमों ने नमाज पढ़ी। लोगों ने बताया कि देश में भाईचारे और अमन के लिए दुआ मांगी है। हम चाहते हैं कि बिसाहड़ा में पुराने दिन लौटकर फिर आएं।

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TeamDigital