बड़ी खबर : ट्रिपल तलाक असंवैधानिक करार, 6महीने में सरकार को कानून बनाने के निर्देश
नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक के चलन को रद्द कर दिया है। साथ ही केंद्र सरकार को 6महीने में कानून बनाने के लिए भी कहा है।
इस मामले पर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की थी। जिसका नेतृत्व जस्टिस जेएस खेहर ने किया, जिन्होंने इस केस में 18 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था। इस केस की सुनवाई 11 मई को शुरु हुई थी।
सुप्रीमकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि यह एक विचार करने का मुद्दा है कि मुसलमानों में ट्रिपल तलाक जानबूझकर किया जाने वाला मौलिक अधिकार का अभ्यास है, न कि बहुविवाह बनाए जाने वाले अभ्यास का।
आज हुई सुनवाई जेएस खेहर समेत जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नतीमन, यूयू ललित और एस अब्दुल नज़ीर ने की।
क्या है सुप्रीमकोर्ट का फैसला :
- सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किये जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा।
- सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को कहा।
- सुप्रीम कोर्ट ने उम्मीद जताई कि केंद्र जो कानून बनाएगा उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा।
- पांच में से तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक माना है। आज के बाद अगर कोई मुस्लिम पुरूष अपनी पत्नी को तीन तलाक देगा तो उसे अवैध माना जाएगा।
- सरकार को अब 6 महीनों के अंदर तीन तलाक को लेकर कानून बनाना पड़ेगा।
फैसले के बाद मुस्लिम महिला बोर्ड की वकील ने कहा है कि इस फैसले का हम स्वागत करते हैं। हमने बहुत लंबी लड़ाई लड़ी है. तलाक-ए-बिद्दत असंवैधानिक करार दिए जाने से मुस्लिम महिलाओं की जीत हुई है।
सुप्रीमकोर्ट तक कैसे पहुंचा मामला :
दरअसल, मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी. बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।
कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है।
शायरा बानो ने तीन तलाक के खिलाफ कोर्ट में अपनी अर्जी में तर्क दिया था कि तीन तलाक न तो इस्लाम का हिस्सा है और न ही आस्था। उन्होंने कहा कि उनकी आस्था ये है कि तीन तलाक मेरे और अल्लाह के बीच में पाप है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी कहता है कि ये बुरा है, पाप है और अवांछनीय है।