बीजेपी में तेजी से चल रहा है उदारवादी चेहरों की अलग पार्टी का मामला
नई दिल्ली (राजा ज़ैद)। भारतीय जनता पार्टी में करीब एक दर्जन सांसद ऐसे हैं जो पार्टी और सरकार के कामकाज के तरीके से खुश नहीं हैं। इन सांसदों में पार्टी के वे उदारवादी चेहरे हैं जो साम्प्रदायिकता के खिलाफ अपनी ही पार्टी को कई बार आईना दिखा चुके हैं।
कई मौको पर इन सांसदों ने न सिर्फ पार्टी लाइन से अलग हटकर राय रखी है बल्कि उन्होंने संसद में सरेआम सरकार के कामकाज पर सवाल भी उठाये हैं। सूत्रों की माने तो अब पार्टी के अंदर एक मुहिम शुरू हो चुकी है। इस मुहिम को बीजेपी के वे उदारवादी चेहरे चला रहे हैं जो अपने अपने क्षेत्रो में अच्छा जनाधार रखते हैं।
सूत्रों की माने तो इन उदारवादी चेहरों को बीजेपी के उन बुज़ुर्ग नेताओं का आशीर्वाद प्राप्त है जिन्हे मोदी – शाह की जोड़ी ने हाशिये पर धकेल दिया है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा से लेकर कीर्ति आज़ाद और शत्रुघ्न सिन्हा तथा जगदम्बिका पाल से लेकर वरुण गांधी तक कई ऐसे सांसद और पूर्व सांसद हैं जिन्हे पार्टी ने ज़िम्मेदारियों से बरी रखा है।
सूत्रों की माने तो उदारवादी चेहरों की इस मुहिम की भनक पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी को भी है। लेकिन फ़िलहाल आलाकमान मुहिम में शामिल नेताओं पर कोई कार्रवाही करके पार्टी के लिए कोई नई मुश्किल खड़ी करने के मूड में नहीं है।
सूत्रों की माने तो पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा द्वारा बनाये गए राष्ट्रीय मंच में बीजेपी सांसदों का जुड़ना जारी है। सूत्रों ने कहा कि ऐसी संभावनाएं बनती दिख रही हैं कि 2019 के चुनावो से पहले बीजेपी के ये उदारवादी चेहरे पार्टी को एक बड़ा झटका दे सकते हैं।
सूत्रों की माने तो यशवंत सिन्हा मित्रता के नाम पर एनडीए घटक दलों के बड़े नेताओं से सम्पर्क बनाये हुए हैं। सूत्रों ने कहा कि यशवंत सिन्हा और एनडीए घटकदलो के नेताओं की दोस्ती आने वाले समय में परवान चढ़ सकती है। ऐसी भी संभावनाएं बन सकती हैं कि 2019 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस और बीजेपी विरोधी दलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा गठजोड़ खड़ा कर दिया जाए।
सूत्रों के मुताबिक यदि ऐसा हुआ तो कांग्रेस की तुलना में बीजेपी को ज़्यादा नुकसान होगा। क्यों कि सीटें कम आने की दशा में सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी के पास घटकदलो का मूँह देखने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा।
फिलहाल ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि 2019 में बीजेपी उन कई सांसदों के टिकिट काट सकता है जिन्होंने सार्वजनिक रूप से सरकार और पार्टी की आलोचना की है। यदि ऐसा हुआ तो यह भी तय माना जा रहा है कि बीजेपी के उदारवादी चेहरे अलग राह पर निकल पड़ेंगे।
हालाँकि अभी 2019 के चुनावो में खासा समय बाकी है लेकिन राजनीति में कुछ भी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इसलिए फ़िलहाल सभी की नज़रें आने वाले कुछ महीनो के राजनैतिक घटनाक्रमों पर टिकी है।