बीजेपी को यहाँ तक लाने में इन नेताओं की रही बड़ी भूमिका
नई दिल्ली (राजा ज़ैद)। कभी संसद के कौने में दो सीटों पर बैठने वाले बीजेपी सांसदों की संख्या आज 300 के पार यूँ ही नहीं हो गयी। 300 सीटों तक पहुँचने के लिए बीजेपी ने एक दो नहीं बल्कि कई कंधे बदले हैं।
वर्ष 1989 से वर्ष 2000 तक का समय बीजेपी के लिए स्वर्णिम समय रहा। इस दौरान बीजेपी ने अपनी मंजिल तय करने के लिए कई कंधे बदले। पहले जनसंघ फिर जनता पार्टी और बाद में बीजेपी बनी इस पार्टी जन्म यूँ तो बहुत पहले हो गया था लेकिन समय के साथ साथ इसके नाम बदलते रहे।
एक समय था जब पार्टी के दो या तीन चेहरे ही पार्टी की पहचान थे। अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की जुगलबंदी में अन्य नेताओं की एंट्री राम जन्म भूमि आंदोलन के दौरान ही हुई।
इंदिरा गांधी के बाद 1984 में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी राजनीति में नए थे। वे पार्टी में अपने कुछ सहयोगियों पर आँख बंद करके भरोसा करते थे। यही कारण था कि वे अयोध्या मामले को लेकर गच्चा खा गए।
1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने बाबरी मस्जिद परिसर में 37 वर्षों से लगे ताले खोलने का आदेश दिया। इस आदेश में न्यायाधीश ने यह अनुमति भी दे दी थी कि दर्शन व पूजा के लिए लोग रामजन्मभूमि जा सकते हैैं।
तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ ऊपरी कोर्ट जाने की हिम्मत नहीं दिखाई। सरकार चाहती तो उसी समय भूमि अधिग्रहित कर सकती थी या शांति व्यवस्था का हवाला देकर सेशन जज के ऑर्डर को ऊपरी कोर्ट में चुनौती दे सकती थी।
इसके बाद राजीव गांधी सरकार में विद्रोह हुआ और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स मामले को लेकर पार्टी छोड़ दी और अलग पार्टी बना ली। अगले आम चुनाव में कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाती रही लेकिन विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल को भी बहुमत नहीं मिला।
इसलिए केंद्र में 2 दिसम्बर 1989 को बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को दो दलों बीजेपी और वामपंथियों का सहारा लेना पड़ा। बीजेपी ने इसका भरपूर फायदा उठाया। बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की। बीजेपी ने केंद्र सरकार को यह धमकी भी दी कि यदि आडवाणी की रथ यात्रा रोकी गयी तो वह केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लेगी।
हुआ भी ठीक ऐसा ही। लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रोक लिया और बीजेपी ने केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। जिसके बाद 10 नवंबर 1990 को विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार गिर गयी।
अब बीजेपी यह समाज चुकी थी कि राम मंदिर का मुद्दा उसकी नैया पार लगा सकता है। इसलिए उसने विश्व हिंदू परिषद को राम मंदिर आंदोलन के लिए आगे किया।
अगले आम चुनाव सम्पन्न होने से पहले ही 29 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई। इस चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त हुआ लेकिन वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। कांग्रेस ने 232 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी वी नरसिम्हाराव देश के प्रधानमंत्री बने। नरसिम्हा राव का प्रधानमंत्री बनना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा यूटर्न साबित हुआ।
दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश में विश्व हिन्दू परिषद का आंदोलन जोर पकड़ने लगा। यह वह समय था जब विश्व हिन्दू परिषद न सिर्फ आंदोलन के लिए जनता से हिंदुत्व के नाम पर चंदा जुटा रही थी बल्कि विहिप से लोगों को जोड़ने की मुहीम भी चला रही थी। विहिप के हर कार्यक्रम में बीजेपी नेता भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे।
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव सरकार थी। 30 जनवरी 1990 को विश्व हिन्दू परिषद ने साधू संतो से अयोध्या पहुँचने का आह्वान किया था। हज़ारो संख्या में विहिप कार्यकर्त्ता और साधू संतो से अयोध्या पहुंचना शुरू कर दिया था। कार सेवको को विवादित स्थल पर पहुँचने से रोकने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी। इसमें 5 लोगों की मौत हो गयी।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस मुद्दे को बढ़चढ़ कर हवा दी और चुनाव में वह उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल करने में सफल हो गयी। कल्याण सिंह को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। अक्तूबर 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित स्थल के आसपास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।
06 दिसंबर 1992 का दिन जब पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे, कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थी। विहिप और बीजेपी नेताओं की मौजूदगी में कार स्वको ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा कोर्ट में शपथ पत्र देने के बावजूद विवादित स्थल सुरक्षित नहीं रह सका।
इस घटना से देश में साम्प्रदयिक सद्भाव बिगड़ा। इस घटना से अगर किसी को नफा हुआ तो वह भारतीय जनता पार्टी थी। कंधे बदलने में माहिर भारतीय जनता पार्टी ने हर लोकसभा चुनाव में अयोध्या में राम मंदिर बनाने का वादा तो किया लेकिन उसने अपना वादा पूरा करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
सही मायनो में बीजेपी को बड़ा करने में विश्वनाथ प्रताप सिंह और नरसिम्हाराव की बड़ी भूमिका रही। अगर वीपी सिंह बीजेपी से समर्थन लेकर सरकार न बनाते या वीपी सिंह की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने उसे समर्थन किया होता तो शायद बीजेपी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाती कि वह लाल कृष्ण आडवाणी को रथ यात्रा निकालने के लिए कहती।
यदि बाबरी मस्जिद ढहाए जाने से पहले ही बीजेपी के इरादे जान चुकी नरसिम्हाराव सरकार कानून ब्वनाकर विवादित भूमि का अधिग्रहण कर लेती तो शायद आज देश में स्थति बदली हुई होती।