पढ़िए : कितनी व्यवस्थित है आंगनबाड़ी व्यवस्था ?
ब्यूरो (नफीसा प्रवीण,पुपरी,बिहार)। 16 जनवरी 2017 को आई खबर के अनुसार बिहार में नए आंगनबाड़ी केंद्रो के माध्यम से 0-6 वर्ष तक के बच्चों को पोषाहार, गर्भवती एंव शिशुवती महिलाओं के लिए पोषण एंव स्वास्थय कार्यक्रमों का संचालन किया जाना है।
केंद्र सरकार को नए आंगनबाड़ी केंद्रो की स्थापना पर होने वाले खर्च की राशि देनी है। केंद्र व राज्य को आंगनबाड़ी केंद्रो की स्थापना पर होने वाले खर्च को 60:40 के अनुपात मे वहन करना है। इस समय बिहार मे कुल 91 हजार 677 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। इन्ही में से एक है बिहार के जिला सीतामढ़ी के पुपरी प्रखंड से लगभग 35 किलोमीटर दूर बसे कुशैल गांव का एक आंगनबाड़ी केंद्र। जिसकी सेविका है “रीना राय”।
वो बृहस्पतिवार का दिन था जब मैं रीना राय के आंगनबाड़ी केंद्र में भ्रमण करने गई। आपके आंगनबाड़ी केंद्र मे कुल कितने बच्चें हैं? पूछने पर रीना राय ने बताया “कुल 40 बच्चें हैं”। लेकिन आज बच्चे इतने कम क्यों हैं? “वो आज बृहस्पतिवार है और कुछ दिनों बाद दिवाली भी है तो बहुत से बच्चे अभी नही आ रहे है। आम दिनो मे 25- 30 बच्चे रोज आते हैं। ज्यादातर ने नामांकन तो कराया है लेकिन बहुत सारे बच्चे आते नही हैं। त्योहार के समय में वैसे भी बच्चे कम ही आते हैं”। रीना राय ने जवाब दिया। बच्चों को खाने में क्या देती है? “पोषाहार के चार्ट अनुसार हर दिन अलग अलग भोजन ही बनता है”। रीना राय ने बताया।
इसी बातचीत के दैरान रजनी देवी नाम की एक महिला अपने बच्चे को इंजेक्शन दिलाने आई जिसने बताया कि “यहां सही समय पर दाल- चावल नही मिलता है। कभी मिलता है और कभी नही मिलता। बच्चों का वजन भी बराबर नही होता है। हम लोग कितनी बार पूछते हैं तो ये यहां की मैडम लोग कहती हैं कि हमारे पास जितना कुछ है उतना ही न करेंगें”।
क्या आपकी नियमित जांच होती है और विटामिन की गोलियां मिलती है या नही? पूछने पर नाम न बताने की शर्त पर एक गर्भवती महिला ने बताया “मुझे तो यहां से विटामिन की गोलियां भी सही से नही मिली। शुरु शुरु में एक- दो बार मिला था लेकिन उसके बाद नही मिला न ही नियमित रुप से कोई जांच हुई। तो इसलिए बार बार वहा जाकर क्या करें। घर पर ही रहते है”।
आंगनबाड़ी में आने वाले कुछ बच्चों से बात हुई जिनके अनुसार “यहां पर बैठने की जगह अच्छी नही है। और रोज-रोज खिचड़ी या दाल चावल ही मिलता है। 26 जनवरी, 15 अगस्त के समय जलेबी, हलवा मिलता है”।
बच्चों की, सेविका की, और कुछ महिलाओं की बातो से आंगनबाड़ी की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बारे में पटना मे रहने वाली स्वतंत्र पत्रकार निकहत कहती हैं “ 1975 में भारत सरकार द्वारा बच्चों को भूख और कुपोषण से बचाने के लिए इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई जिसके अंतर्गत शून्य से लेकर छह साल तक के बच्चों की देखभाल का प्रवाधान है। लेकिन आज अधिकतर आंगनबाड़ी की स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि इसका उद्देश्य कहीं गुम हो गया है।
हांलाकि अब भी बहुत देर नही हुई अगर हम एक नए रुप में पूरी तैयारी के साथ इसकी शुरुआत करें तो आंगननबाड़ी की दशा और दिशा दोनो में सुधार आ सकता है। परंतु सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है सेविका और सहायिका के चयन और कुशल प्रशिक्षण के बाद उनकी सुविधाओं का खास ख्याल रखना”।
कुल मिलाकर ये बात सामने आती है कि यदि हम आंगनबाड़ी की अव्यवस्थित स्थिति को वास्तव में बदलना और मजबूत करना चाहते हैं तो हमारा ध्यान नए आंगनबाड़ी केंद्र खोलने से कहीं ज्यादा पहले से उपस्थित आंगनबाड़ी केंद्रो की धरालत स्थिति में सुधार लाने पर होना चाहिए।
(चरखा फीचर्स)