नोटबंदी: कैशलैस अर्थव्यवस्था के दावे पर भी फेल हुई सरकार

नोटबंदी: कैशलैस अर्थव्यवस्था के दावे पर भी फेल हुई सरकार

नई दिल्ली। नोट बंदी पर अपनी पीठ थपथपा रही मोदी सरकार के दावे रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट आने के बाद धुंधले पड़ते नज़र आ रहे हैं। रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में साफ़ हो गया है कि सरकार ने नोट बंदी लागू करने के पीछे जो अहम वजह बताई थी वह सही नही निकली।

नोट बंदी को लेकर मोदी सरकार का दावा था कि इससे देश में जमा काला धन बाहर आएगा लेकिन रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में साफ़ हो गया कि नोट बंदी के दौरान चलन से बाहर किये गए पांच सौ और एक हज़ार के पुराने नोट 99.30% वापस आ गए।

वहीँ नोट बंदी लागू करने के बाद सरकार की तरफ से यह भी दावा किया गया था कि इससे कैशलैस चलन शुरू हो जायेगा और देश की अर्थव्यवस्था कैशलेस हो जाएगी। लेकिन रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि सरकार अपने दावो पर पूरी तरह विफल साबित हुई है।

रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के आंकड़ों से पता चलता है कि नोटबंदी के बाद बचत योजनाओं में नकद जमा का अनुपात रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी के बाद साल 2017-18 में नकद में बचत बढ़कर ग्रॉस नेशनल डिस्पोजबल इनकम का 2.8 फीसदी तक पहुंच गया, जो कि पिछले सात साल में सबसे ज्यादा है।

आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2014-15 में नकद बचत जीएनडीआई का एक फीसदी और 2015-16 में इसमें 1.4 फीसदी की बढ़त हुई है। साल 2016-17 में इसमें 2 फीसदी की गिरावट आई थी।

28 अक्टूबर, 2016 (नोटबंदी से पहले) को जनता के पास कुल नकदी 17.01 लाख करोड़ रुपये थी, जबकि 3 अगस्त, 2018 को यह 18.46 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई।

अब नोट बंदी के दौरान मोदी सरकार द्वारा किये गए दावे झूठे साबित होने पर विपक्ष मोदी सरकार को घेर रहा है। फ़िलहाल देखना है कि नोट बंदी को लेकर सरकार के दावे फेल होने के बाद अब सरकार इस पर किस तरह डेमेज कंट्रोल करती है।

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TeamDigital